पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१८३

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हिन्दी साहित्यकी भूमिका ईसवीके पहले इस प्रकारकी अनेक स्मृतियाँ तैयार हो गई थीं। मानव-धर्मशास्त्र या मनुस्मृति इन्हीं स्मृतियों के निचोड़का संग्रह है। अर्थशास्त्रकी भी अनेक पुस्तकें उस युगमें लिखी गई थीं । अर्थशास्त्रसम्बन्धी बहुतसे सिद्धान्त विभिन्न आचार्यों के नामपर चल पड़े थे। कौटिल्वका अर्थशास्त्र इन्हीं सिद्धान्तोंका संग्रह है। बाद में भी इस विषयपर ग्रन्थ लिखे गये जिनमेंसे अधिकांश इस समय लुम हो गये हैं। कामशास्त्रकी भी उन दिनों काफी चर्चा थी। अनेक आचार्योंने ऐहिक सुख- भोगके नाना अङ्गोंपर ग्रन्थ लिखे थे। इन सबका सार संग्रह करके सन् ई.की पहली या दूसरी शताब्दीमें वात्स्यायनने अपना प्रसिद्ध काम-सूत्र लिखा। बादमें • कामशास्त्र अत्यन्त सीमित अर्थमें बर्ता जाने लगा और इस सीमित अर्थके विधायक बहुत-से ग्रन्थ लिखे गये। दर्शन (सन् ई० २०० से ८०० ई० तक) भारतीय दर्शनोंके मलमें वेद और उपनिषद हैं । जैन और बाद दर्शन भी जो अरनेको वैदिक सम्प्रदायका प्रतिद्वन्द्वी समझते है, इनसे प्रभावित हुए थे। हालही में विश्वास किया जाने लगा है कि अध्यात्मवादका मूल उत्स भारतवर्षकी आर्येतर जातियाँ थीं। जो हो, इसमें सन्देह नहीं कि जिस रूपमें आज हम । भारतीय दर्शनको पाते हैं उसकी प्रेरणा बेदोंसे प्राप्त हुई थी। दर्शन छ: माने जाते हैं, यद्यपि चौदहवीं शताब्दी में मध्वाचार्य ने सोलह दर्शनों का उल्लेख किया था । छ: मुख्य दर्शनों के नाम इस प्रकार हैं : सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा (वेदान्त)। ये दर्शन सूत्र रूपमें लिखे गये थे और इनको समझने के लिए भाष्योंकी बड़ी जरूरत थी । लबसे पुराना भाष्य मीमांसा ( पूर्व) पर शबर-भाष्य है । बरके ही सम्प्रदायमें सुप्रसिद्ध कुमारिल भट्ट हुए जिन्हें बौद्धोंको भारतवर्षसे निर्मूल करनेका नाम प्राप्त है। इसके बाद न्यायका वात्स्यायन-भाष्य है। फिर वैशेषिक दर्शनपरका प्रशस्तपाद-भाष्य है। .. आगे चलकर न्याय और वैशेषिक एकमे मिल गये और 'नव्य न्याय' नामसे उत्तरकालमें एक प्रबल साहित्य सृष्ट हुआ। योगदर्शनके भाष्यकार न्यासका समय, म०म० हरप्रसाद शास्त्रीके मतसे, पाँचवीं सदी होना चाहिए। सांख्यक मूल सूत्र और भाष्य शायद खो गये हैं। सांख्य सूत्र नामसे