पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१८१

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हिन्दी साहित्यकी भूमिका सम्राट अशोकके गुरु थे। पिंगलका एक अन्य संस्करण प्राकृत पिंगल है जिसमें प्राकृत छन्दोंके नियम बताये गये हैं, पर यह चौदहवीं शताब्दीसे अधिक प्राचीन नहीं है। इस विषयपर बहुतसे ग्रंथ लिखे गये हैं पर सभी अपेक्षाकृत नवीन हैं। वेदांगोंमें ज्योतिष एक महत्त्वपूर्ण विषय है। वेदांग ज्योतिष नामक लगध मुनि प्रणीत ग्रन्थ उपलब्ध हुआ है। इसके दो रूप है, ऋग्वेदका वेदांग और यजुर्वेदका वेदांग । दोनोंमें बहुत थोड़ा अन्तर है। इनमें सब मिलाकर ४५ श्लोक हैं। इनमैकी ज्योतिषिक गणना बहुत पुरानी है; केवल सूर्य और चन्द्रमा इन दो ही ग्रहोंकी मध्यम गति बताई गई है। दिन और रातकी वृद्धि तथा क्षयको एक नियमित वेगसे चालू मान लिया गया है। बादके हिन्द ज्योतिषको - तीन स्कंधोंमें विभाजित कर सकते हैं: संहिता, गणित और जातक । प्राच्य- विद्या-विशारदोंमेसे अधिकांशका मत है कि संहिता-स्कंध मगोंसे' और जातक ग्रीकोंसे ग्रहण किया गया था। इन तीनों स्कन्धोंपर संस्कृतमें विशाल साहित्यका निर्माण हुआ है। विशेष कर गणितमें हिन्दुओंने संसारको बहुत बड़ा ज्ञान दिया है, हालाँ कि उन्होंने थोड़ा बहुत ग्रीकोसे भी ग्रहण किया है। आर्यभट, लल्ल, वराह, ब्रह्मगुप्त, मुञ्जाल और भास्कराचार्यने गणित-ज्योतिषको अभिनव समृद्धिसे समृद्ध किया था। अत्यन्त आधुनिक कालमें भी संस्कृतमें ज्योतिषके ग्रन्थ बराबर लिखे जाते रहे हैं। म. म. चन्द्रशेखर सामन्त और म०म०पं० सुधाकर द्विवेदीके ग्रन्थ इस विषयमें विशेष उल्लेखयोग्य हैं। पुराण इतिहास (ई० पू० ६००-४०० ई० तक) सूत्रकालंके अन्तमें संस्कृतमें एक विशेष जातिका छन्द बहुत लोकप्रिय होने लगा था। इसका शास्त्रीय नाम 'अनुष्टुभ है पर साधारणतः यह 'श्लोक' नामसे मशहर है। पुराण और इतिहासका अधिकांश इसी श्लोक में लिखा गया है। कहते है कि महाभारत और रामायण सन् ईसवीसे लगभग चार सौ वर्ष पहले लिखे गये थे। महाभारत परम्परा-समागत इतिहासोका संग्रह था और रामायण परम्परासे प्राप्त कान्य या एपिक था । लेकिन इन दोनों ग्रन्थोंको हम जिस रूपमें आज पाते Masii