पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१८०

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संस्कृत-साहित्यका संक्षिप्त परिचय wo- सन्से चार शताब्दी पहले है। इनकी लिखी अष्टाध्यायीकी महिमा इस देशमें अब भी प्रतिष्ठित है। कहते हैं कि संसारमें इतना परिपूर्ण व्याकरण अब तक नहीं लिखा गया । अष्टाध्यायी में ३८६३ सूत्र हैं, इनपर कात्यायनके शोधत और परिवर्तनसम्बधी वार्तिक हैं। सूत्र और वार्तिकोंकी मिली हुई संख्या ५१०० से भी ऊपर है। इन दोनोपर पतञ्जलिने लगभग १५० ई० पू० में अपना प्रसिद्ध महाभाष्य लिखा । पाणिनिके पूर्व और भी अनेक व्याकरण-सम्प्रदाय थे। पाणिनिको आधार करके बहुतसे व्याकरणा-ग्रन्थ लिखे गये है। अकेली अष्टा- ध्यायीपर ५० से अधिक व्याख्याएँ थीं जिनमेकी अधिकांश लुम हो गई हैं। पाणिनिके बाद, उन्हींकी शैली और प्रतिपादित अथोंके अनुकरणमें कई अन्य न्याकरण लिखे गये थे। इनमें प्रसिद्ध ये हैं (१) कलाप (द्वितीय शताब्दी), (२) चान्द्र (एठ शताब्दी), (३) जैनेन्द्र । ८ वी शताब्दी), (४) शाकटायन (नवम शताब्दी), (५) संक्षिा सार (नवम शताब्दी), (६) सारस्वत (एकादश दशताब्दी), (3) हेमचन्द्र (१२ वीं शताब्दी), (८) मुग्धबोध (१३ वीं शताब्दी), (२) तुद्य (१४ वीं शताब्दी), आजकल पाणिनिके सम्बन्धने सबसे लोकप्रिय ग्रन्थ भट्टोजी दीक्षितकी सिद्धान्तकौमुदी है। निरक्त वैदिक निघषटके माध्यके रूपमें सम्भवतः इंसासे छ: सौ वर्ष पहले लिखा गया था। इसमें बैदिक शब्दोंकी निक्षति बताई गई है। कौन-सा शब्द क्यों किसी विशेष अर्थ व्यवहृत हुआ है, यह बात समझाई गई है। आधु- निक भाषाशास्त्री इन सभी निक्तियोंने सहमत नहीं होने पर वह स्वीकार करते हैं कि वेदोंको समझनेके लिए निरुक्त नितान्त आवश्यक है। निरुक्तकी एक टीका पाई गई है जो १२ वीं शताब्दी के आसपास की लिस्त्री हुई है। इस सम्बन्धमें यह ध्यान देनेकी बात है कि हिन्दुओंने सन् ईसवीके बहुत पूर्व कोष- प्रन्थ लिखे थे। इन कोषों में विषयानुसार एकार्थक शब्दोका संग्रह रहता था। संसारकी किसी जातिने इतने पुराने जमाने में कोष नहीं लिखे । सन् ई०के आस- पासका लिखा हुआ अमरकोष एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है और इस तरहके बीसियों कोष संस्कृतमें बने थे । आयुर्वेदिक वनस्पतियों के अर्थ और गुणके निदर्शक निघण्टुओं का वर्गीकरण आज भी विज्ञान-सम्मत समझा जाता है। छन्दःशास्त्रका सबसे प्राचीन ग्रंथ पिंगल छन्दःसूत्र है। पिंगल कौन थे और कब पैदा हुए थे, यह अब भी निश्चित नहीं हुआ है। कुछ पंडितोंके मतसे वे