पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१७९

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१६० - हिन्दी साहित्यकी भूमिका पड़ने-पढ़ानेके लिए कण्ठस्थ करना निहायत जरूरी था, इसी लिए इस युगमें सूत्ररूपसे बातें लिखी गई। उद्देश्य यह था कि थोड़ेमें बहुत याद कर लिया जाय । वेदाङ्ग-साहित्य सूत्रोंमें लिखा गया है। कहीं कहीं ये सूत्र पद्यमें भी है पर अधिकतर गामें हैं । वैदिक साहित्य स्वतःप्रमाण माना जाता था पर इस (बेदाङ्ग) श्रेणीके ग्रन्थोंके लेखकोंका नाम प्रायः सर्वत्र पाया जाता है । अर्थात् यह साहित्य मनुष्यकृत माना जाता था। (१) शिक्षामें उच्चारणकी विधियोंका निर्देश होता है। इस अङ्गपर अनेक ग्रन्थ लिखे गये थे जो दुर्भाग्यवश अधिक- तर लुत हो गये हैं। जो बचे हैं उनमेंसे कई यूरोपियन, अमेरिकन और भारतीय पण्डिलोद्वारा सम्पादित होकर प्रकाशित हुए हैं। (२) कल्प-सूत्र तीन दरहके हैं: श्रौतसूत्र, धर्मसूत्र और गृह्यसूत्र. श्रौतसूत्रोंमें वैदिक यज्ञोंका विधान किया है। इन सूत्रोंको आश्रय करके रचित बहुत थोड़ा साहित्य प्राप्त हुआ है। इस समय इनके आधारपर लिखित साहित्यका अधिकांश सन् ईसवीकी छठीसे लेकर बारहवीं शताब्दी तक ही लिखा गया था। धर्मसूत्रोंमें ब्राहाणके नित्य और नैमित्तिक कर्मका विधान है। छठी शताब्दीसे लेकर आज तक इन सूत्रोंको आश्रय करके एक विशाल साहित्यका निर्माण हुआ है। बादकी बनी स्मृतियों, टीकाओं, भाष्यों और निबन्धोंमें इस साहित्यका प्रचुर प्रसार हुआ है । स्मृतियाँ धर्मसूत्र तथा श्रौत और गृह्यसूत्रोंमें द्विजके संस्कारों और अन्यान्य कमौका विधान है। उस युगके सामाजिक आदर्श और परि- स्थितिका अध्ययन करनेकी दृष्टि से इन सूत्रोंका बड़ा महत्त्व है। विण्टरनित्जका कहना है कि 'गृह्यसूत्र' नृतत्त्व-विशारदोंके बड़े कामकी चीज़ है। यह याद रखना चाहिए कि ग्रीक और रोमन सामाजिक विधानको जाननेके लिए पण्डिलोंको कितना परिश्रम करना पड़ा है, कितने प्रकारकी बहुधा-वित्रस्त साम- ग्रीकी छान-बीन करनी पड़ी है पर यहाँ भारतवर्ष में अत्यन्त प्रामाणिक विवरण प्रात हैं और इन विवरणोंको हम आँखों देखा विवरण कह सकते हैं। ये सूत्र मानो प्राचीन 'फोकलोर जर्नल' हैं। इन तीन प्रकारके सूत्रोंके बाद एक चौथे प्रकारका सूत्र है जो सीधे श्रौतसूत्रोंसे सम्बद्ध है। इसे शुल्बसूत्र कहते हैं। इसमें यशवेदियोंके माप करनेकी विधि है। भारतीय पण्डितोंका दावा है कि शुल्बसूत्रोंमें रेखागणित-सम्बधी नियमों का वैज्ञानिक व्यवहार संसारमें सबसे पहले हुआ था। म्याकरणके सबसे प्रसिद्ध आचार्य पाणिनिका समय निश्चित रूपसे ईसवी