पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१७७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- हिन्दी साहित्यकी भूमिका विशेषता है कि उसकी धारावाहिकता (कण्टिन्युइटी) कहीं भी क्षुण्ण नहीं हुई, लेकिन संस्कृत-साहित्यकी हजारों वर्षोकी धारावाही रचनाके सामने अंग्रे- जीफे साहित्यकी धारावाहिकता कितनी अल्प है! वैदिक साहित्य (१००० ई० पू० तक) 'चारों वेदोंके नाम सर्व-विदित हैं। इनमें सामवेद और यजुर्वेदका ज्यादा सम्बन्ध तो यज्ञोंले ही है, लेकिन ऋग्वेद और अथर्नवेद नाना दुष्टियोंसे बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं | ऋवेदकी ऋचाएँ कब बनी थी, इस विषय में नाना विज्ञज- नोंके नाना मत हैं; पर इतना निर्विवाद है कि सन् ई० से डेढ़ हजार वर्ष पहले 'ये वाएँ बन चुकी थीं। इनकी भाषा एक-सी नहीं है, कहीं कहीं उसमें अत्यन्त प्राचीनताके चिह्न हैं और कहीं कहीं अपेक्षाकृत कम प्राचीनताके । कुछ पंडि- तोंकी रायमें सामवेद और अथर्ववेदके अनेक मंत्र ऋग्वेदसे भी वहतपुराने हैं। अथर्ववेदमें ऐसे बहुत तरहके लोक-प्रचलित टोटकोंका संग्रह है जो आश्चर्य- जनक रूपमें जर्मनी और पोलेण्डमें प्रचलित प्राचीन युगके टोटकोंसे मिल जाते हैं। वेदोंके जो भाष्य इस समय मिलते हैं, वे अपेक्षाकृत आधुनिक हैं। सायण और मम्बके प्रसिद्ध भाष्य चौदहवीं सदीमें लिखे गये थे। बंगालमें प्राप्त नगुद- भाष्य दसवीं सदीकी रचना है। आलोचनात्मक दृष्टिसे देखनेवाले पण्डितोंने बताया है कि ये भाष्य अपेक्षाकृत आधुनिक परंपराओंपर आश्रित हैं। इसीलिए कभी मन्त्रोंके यथार्थ भावको नहीं बताते । फिर भी, जैसा कि मैक्समूलरने कहा है, यह तो मानना ही पड़ेगा कि सायणका भाष्य अन्धको लकड़ी है। युरो- पियन पण्डितोंके सत्प्रयत्नसे इन प्राचीन मन्त्रों के समझने के अनेक द्वार उद्घाटित हुए हैं। जेन्दावस्ताके पाये जानेके बादसे इस अध्ययनको और भी बल मिला है। इसके अतिरिक्त असीरिया, मिल और बेबिलोनियामें आविष्कृत प्राचीन भग्नावशषों, पौराणिक कथाओं तथा अन्यान्य बातोंने इस दिशामें बड़ी सहा- यता पहुँचाई है। वैदिक साहित्यको पण्डितोंने तीन भागों में विभक्त किया है। संहिता-जिसकी चर्चा ऊपर हो चुकी है, ब्राह्मण और उपनिषद् । ब्राह्मण गद्यमें लिखे गये है