पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१७६

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संस्कृत-साहित्यका संक्षिप्त परिचय ये काहपर लिखे गये हैं? संस्कृत में ये ग्रंथ नाना पदार्थोंपर लिखे गये हैं जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण साड़के पत्ते हैं। पंजाब और कादमीरको छोड़कर बाकी सारे भारत में इन पत्तोंका उपयोग होता था। उत्तर भारतमें इनपर स्याहीसे लिखा करते थे और दक्षिण भारतमें लोहेकी कलमस अक्षर कुरेद दिया करते थे, बादको उसपर स्याही और देते थे। सबसे प्राचीन ताड़पत्रकी पुस्तक सन् ई० की दूसरी शताब्दीकी है। मॅकार्टनेने काशगरसे जो प्राचीन हस्तलेख संग्रह किये थे, उनकी एक ताड़म- का ग्रंथ सन् ईसवीकी चौथी शताब्दीका है। जापान में इस देशकी सन् इंसबीकी छठी शताब्दीकी लिखी हुई दो पुस्तके प्रज्ञापारमिता-हृदय' और 'उष्णीषविजयधारिणी' सुरक्षित है । ताइपत्रों के बाद भूज-त्वक् या भोजपत्रोंका स्थान है। मध्ययुगकी भूर्जपवाली पुस्तकोंकी जिल्द भी बँधने लार गई थी। हिमालयके पाद-देशमें इन पत्रों का अधिक उपयोग होता था। भूज-पत्रका सबसे प्राचीन ग्रंथ जो अब तक मिला है 'धम्मपद' (पाली) की एक प्रति है जो सन् ईसवीकी तीसरी शताब्दीकी है। संस्कृतकी सबसे पुरानी पुस्तक जो भोजपत्रपर लिखी पाई गई है 'संयुक्तयागम सूत्र (बौद्ध) है जो संभवतः चौथी शताब्दीको है। कागजपर लिखी गई सबसे पुरानी पुस्तक ईसाकी तेरहवीं शताब्दीकी बताई .. जाती है। पर पंडितोंका खयाल है कि मध्य एशियामैं गड़ी हुई संस्कुतकी लिखी जो पुस्तके कागजकी प्राप्त हुई है, उनका काल सन् ईसवीकी चौथी शताब्दी होना चाहिए। इन चीजोंके सिवा लईके कपड़े, लकड़ी के पट्टे, रेशमी कपड़े और चमड़ेपर भी संस्कृत पुस्तकें लिखी जाती थीं। इन चीजोंपर लिखी पुस्तके विभिन्न पुस्तकालयों में सुरक्षित हैं । छोटे छोटे दान-पत्र, प्रशस्तियाँ आदि तो पत्थर, ईंट, सोने, चाँदी, तांबे, पीतल, काँसे तथा लोहेके पत्तरोंपर लिव जाती थीं। ऊपरका दिया हुआ वर्गीकरण कालक्रमान्वयी भी कहा जा सकता है, हालाँ कि वह संपूर्णतः कालक्रमान्वयी नहीं है । लेकिन लक्ष्य करनेकी बात यह है कि अशात कालसे माज तक संस्कृत साहित्य धारावाहिक रूपसे बनता आ रहा है, कहीं भी इसमें छेद नहीं हुआ। रिकेटको गर्व है कि अंग्रेजी साहित्यकी यह