पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१७५

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हिन्दी साहित्यकी भूमिका समझे जानेवाले तथा अल्पज्ञात ग्रन्थोंका पता लगा है और लगता जा रहा है। हालमें ही महापण्डित राहुल सांकृत्यायनकी तिब्बत-यात्राने इस संख्याको और भी अधिक बढ़ा दिया है। निःसन्देह इस समय तक संस्कृतमै लिखे गये ग्रन्थोंकी संख्या आधे लाखके पार हो गई है। फिर भी संस्कृत ग्रन्थों की खोजका काम अभी बाल्यावस्थामें ही है। सन् १८१९ में, जब यह खोजका काम शुरू किया गया था, जर्मन विद्वान् श्लिगलको एक दर्जनसे अधिक ग्रन्थों का भी पता न था ! इन ग्रन्थोंका वर्गीकरण विण्टरनिब्जने लिखा है कि ' लिटरेचर' (साहित्य) शब्द अपने व्यापक अर्थमें जो कुछ भी सूचित कर सकता है, वह सब संस्कृतमें वर्तमान है। धार्मिक और ऐहिकता-परक ( सेक्यूलर ) रचनाएँ, महाकाव्य, लिरिक, नाट- कीय और नीतिसम्बन्धी कविता; वर्णनात्मक, अलंकृत और वैज्ञानिक गद्य:- सब कुछ इसमें भरा पड़ा है। साधारणतः निम्नलिखित कई अंशोंमें विभक्त कर लेनेपर इस साहित्यकी चर्चा सुगम होगी। (१) वैदिक साहित्य .(२) वेदाङ्ग साहित्य जिसमें शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, छन्दःशास्त्र और ज्योतिष सम्मिलित हैं। (३) पुराण और इतिहास (४) धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र और कामशास्त्र (५) दर्शन (६) संस्कृतका बौद्ध और जैन साहित्य (७) आयुर्वेद और अन्य उपवेद (८) अलंकृत काव्य, गद्य, नाटक, चम्पू और कहानियाँ (९) नाटक और काव्यके विवेचनात्मक ग्रंथ {१०) संकीर्ण काव्य, धर्म और दर्शनपर टीकाएँ (११) निबंध (१२) तंत्र-ग्रंथ और भक्ति साहित्य (१३) पत्थरों और ताम्रपत्रोंका साहित्य नक्षय