पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१७४

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संस्कृत साहित्यका संक्षिप्त परिचय संस्कृत में लिखे हुए ग्रंथ सन् १८४० ई० में एलफिन्स्टन नामक यूरोपियन पण्डितने हिसाब लगाकर देखा था कि संस्कृत साहित्यमें जितने ग्रन्थ विद्यमान हैं, उनकी संख्या ग्रीक लैटिनमें लिखे हुए ग्रन्थों की मिली हुई संख्यार कहीं अधिक है। मगर उस समय तक संस्कृतके बहुत कम अन्य पाये गये थे ! इसका अनुमान इसोसे क्रिया जा सकता है कि सन् १८३० में फ्रेडरिख जैसे ताहियान को केवल साढे तीन सौ संस्कृत ग्रन्थोंका पता था और सन् १८५२ में वंचरने अपने संस्कृत- साहित्यके इतिहासमें जिन ग्रन्थोंकी चर्चा की थी उन सबकी संख्या ५०० के ही आसपास थी। बादमें वेबरकी संगृहीत पुस्तकोंकी संख्या १३०० हो गई थी। यदि १८४० में ही एलफिन्स्टनकी बात ठीक थी तो आज तो कहना ही क्या है । सन् १८९१ ई० में थियोडोर आप्रेस्टने 'बैटलॉगस कैटलागोरम' नामको सूची तैयार की। इसमें उस समय तकके पाये गये समस्त संस्कृत ग्रन्थों के नाम थे। इसमें वर्णित ग्रन्थोंकी संख्या ३२ हजारके आसपास थी। और सन् १९१६ में महामहोपाध्याय ६० हरप्रसाद शास्त्रीने, जिन्हें नेपालसे बहुत-सी अज्ञात पुस्तकोंको प्रकाशमें ले आनेका श्रेय प्राप्त है, ४० हजारसे ऊपर संस्कृत ग्रन्थोंकी चर्चा की थी। आज संख्या इससे भी कहीं ज्यादा है। तबसे अब तक सूदुर मध्य एशिया, तिब्बत और नेपालसे बहतसे खोये हुए