पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१७१

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उपसंहार इम अबतक काव्य, नाटक, उपन्यास, कहानी आदि रसात्मक साहित्यकी ही चर्चा करते आ रहे हैं। पर हमारी भाषामें केवल ये ही चीजें नहीं लिखी गई हैं। जिस दिन हिन्दीके लेखकका चित्त मुक्त हुआ उस दिन उसने प्रायः सभी क्षेत्रों में प्रयत्न सुरू किया। साहित्यके अध्ययन के साधन जुटाने में कुछ पुराने लेखक इस कालमैं बहुत महत्वपूर्ण कार्य करते रहे । श्यामसुन्दरदास, मिश्रबन्धु, रामनेश त्रिपाठी आदिके नाम बहुत दिनोंतक याद किये जायगे। प्रन्यसम्पादन इसके पहले कम ही हुआ था। इस कालमें श्यामसुन्दरदासके अतिरिक्त कई अन्य विद्वानोंने बड़े महचके अन्ध सम्पादित किये । ग्रन्यसम्पादन, शोधकर्म और ग्रन्थसंचय जैसे महत्त्व- के काम हिन्दी भाषाके माध्यमसे पहले हुए भी नहीं ये और लोगोंने इनका, महत्व भी नहीं समझा था। इस कालमें मुनि जिनविजय, रामचन्द्र शुक्ल, राहुल सांकृत्यायन, आनन्द कौसल्वायन, धीरेन्द्रर्मा, रामहमार वर्मा, पीताम्बरदत्त बड़- वाल जैसे विद्वानोंने इन क्षेत्रोंमें महत्वपूर्ण कार्य किये । भाषाविज्ञानके अध्य- यनमें विशेष रस लिया जाने लगा। श्यामसुन्दरदास, धीरेन्द्रवर्मा, मङ्गलदेव शास्त्री आदि पण्डितोंने इस विषयके उत्तम ग्रन्थ लिखे । भारतीय इतिहासके क्षेत्रमें ओझाजी पहलेसे ही अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे थे। हमारे आलोच्य कालमें जयचन्द्र विद्यालंकारने मौलिक अनुसन्धान किये । राहुल संस्कृत्यायन और सम्पूर्णानन्दजी जैसे मनीषियोंने तत्वविचारके अनमै महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे और भारतीय दर्शनके क्षेत्रमें बलदेव उपाध्याय, देवराज, आदिके ग्रन्थ बहुत उपादेय हुए । कन्हैयालाल पोद्दारने संस्कृत साहित्यका इतिहास भी लिखा । यद्यपि विज्ञानमें हमारी भाषाने कुछ नया नहीं दिया तथापि इस क्षेत्र में भी अनेक कृती वैज्ञानिक ग्रन्थ लिखते रहे। रामदास गौड़, फूलदेव सहाय वर्मा, गोरखप्रसाद, त्रिलोकीनाथ वर्मा, सत्य- प्रकाश, महावीरप्रसाद आदि वैज्ञानिकोंने भिन्न भिन्न विषयों की बहुत उपयोगी पुस्तके लिखीं। इस प्रकार आजसे पचीस वर्ष पहले हिन्दीने जो सब कुछको अपनी आँखों देखनेकी दृष्टि पानेका यत्न आरम्भ किया था उसमें बहुत कुछ सफलकाम रही। परंतु यह सत्य है कि अभीतक इन अध्ययनोंमें उतनी मौलिकता नहीं आ पाई है जिलनीकी आशा की जानी चाहिए। हिंदी संसारकी सर्वाधिक बोली जानेवाली ६-७ भाषाओंमेंसे है । उसका विस्तार जितना अधिक है, उसकी