पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१६९

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उपसंहार 4 . साहित्यमें यह बात अभाव रूपमें ही दिखाई दी। कविने प्रश्नभरी दृष्टिसे दुनियाको देखा सही, परन्तु उसका अपना विश्वास ऊपर नहीं आया । संभ- अतः वह अब भी उस बीजकी भाँति के अंकुरका पूर्वरूप होता है फूलकर केवल फटनेकी अवस्थामें था। समाजको सुधारने के लिए जो प्रयत्न थे वे इस कालमें राजनीतिक स्वाधीनता - प्राप्त करने की ओर मुड़ गये।राजनीतिने निश्चित रूप से हमारे समस्त प्रयत्नोंको आत्मसात् करना आरम्भ किया। इस बातने सामयिक समाचारपत्रों में बहुत बड़ा परिवर्तन कर दिया। इस काल में हिन्दीने कुछ इतने महत्वपूर्ण पत्रकार पैदा हुए जो दीर्घकाल्तक याद किये जायेंगे। बुद्धिगत प्रौढ़ताके साथ-साथ चरित्रगत दृढ़ताने इन पत्रकारों को बड़ी सफलता दी। गणेश शंकर विद्यार्थी, पराड़करजी, अस्विकाप्रसाद वाजपर्यः, लक्ष्मण नारायण गर्दे और बनारसीदास चतुर्वेदी ऐसे ही पत्रकार हुए। . (२) दूसरा काल सन् १९३० से वर्तमान महायुद्ध के आरम्मतक माना जा सकता है। इस कालमै असन्तोषने भी निश्चित रूप ग्रहण किया और साथ ही नवीन रचनात्मक विचारधाराएँ भी उद्भुत हुई। पुरानी सामाजिक व्यवस्था उसका आर्थिक ढाँचा और उत्तका धार्मिक आधार नवीन विचारकोको अत्यन्त अस- न्तोषजनक जचे। नये सिरेते सत्र कुछको सजानेकी प्रवृत्ति उत्तरोत्तर विकसित होती गई। वैयक्तिकता यद्यपि प्रतिष्ठित रही परन्तु अवैयक्तिक अनासक्त दृटिश वस्तु- ओंको देखनेकी प्रवृत्ति भी बढ़ी। प्रसाद, निराला, पंत आदि नये ऋषियोंके प्रति जो विरोध-भाव था वह शिथिल होता गया और आगे चलकर उनका सम्मान किसी भी पूर्ववर्ती कविसे अधिक हुआ। यह इस बातका सबूत था कि हिन्दी- भाषी जनता नवीन विचारोंको ग्रहण करनेके लिए तैयार है ! भगवतीचरण वर्मा, बच्चन आदि कवियोंको बहुत सम्मान मिला। इन कवियों में समाज-व्यव- स्थाके प्रति असन्तोष स्पष्ट रूपमें प्रकट हुआ। प्रसाद, महादेवी और पन्तने इस कालमें अपने नवीन विचारोंको मूर्तरूप दिया। सभी नवीन कवियोंको एक ही नाम देकर जो गलती की गई थी वह अब प्रकट हुई ! कहानी और उपन्या- सके क्षेत्रमें जैनेन्द्रकुमार, अशेय, चन्द्रगुप्त, यशपाल आदिने केवल असन्तोषकी भावनाको ही नहीं उकसावा, अपने रचनात्मक सुझाव भी उपस्थित किये।