पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१६०

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हिन्दी साहित्यकी भूमिका ठीक नहीं कि इस प्रकारके कवियों में कोई एक सामान्य प्रवृत्ति ही दिखाई पड़ी है । छोटी-मोटी ऐसी अनेक प्रवृतियाँ बीज रूपसे दृष्टिगोचर हुई हैं जो भविष्धमें निश्चित और विशेष आकार धारण कर सकती हैं । उनका मूल उद्गम भी सर्वत्र एक नहीं और आपाततः एक जैसी दिखाई देनेपर भी उनका भावी विकास भी एक रूपमें ही नहीं होगा। नीचे कुछ विशेष प्रवृत्तियों का उल्लेख किया जाता है। साहित्यमें समाजवादी सिद्धान्तके बहल प्रचारसे हो या प्रान्तीय स्यायत्त- शासनकी प्रतिक्रियासे हो, राष्ट्रीय भावके कवियोंमसे अधिकाँशने भारतमाताके स्थानपर किसानों और मजदूरोंका स्तव-गान आरंभ किया है। इन स्तव-गायकोंके "सिवा बहतसे ऐसे युवकोंको भी, जो भविष्य में चमक सकते हैं, गरीबों, मजदरों और किसानोंके संबंध कविताएँ लिखी हैं। इन कविताओंकी संख्या वर्गीकरण और विवेचनाके लिए पर्याप्त नहीं हैं, फिर भी इनमें चार प्रकारकी प्रवृतियाँ स्पष्ट ही लक्षित हो रही हैं। वे चार प्रकारके कबि ये हैं--(१) पहले वे लोग जो स्वयं गरीचीका जीवन बिता चुके या बिता रहे हैं अथवा गरीबोंमें हिल, मिल कर उनके सुख-दुःखोंको गाढ़ भावसे अनुभव कर चुके हैं। ऐसे कवि- योंमें गरीबों या शोषितोंके प्रति हमदर्दीकी अपेक्षा पूँजीपतियों और जमींदारों या शोषकों के प्रति प्रतिशोध और विक्षोभके भाव ही अधिक प्रकाशित हुए हैं। इस श्रेणीक कवि बिहार में अधिक दिखाई दे रहे हैं। (२) दसरे वे जो वर्तमान सामाजिक बुराइयोंको ग्रंथ गत ज्ञानके द्वारा या आत्म-चिन्तनके द्वारा समझनेकी कोशिश करके इस नतीजेपर पहुँचे हैं कि आर्थिक वितरणकी विषमता ही समस्त दोषोंका मूल कारण है। उन्होंने बुद्धिंद्वारा विषयको उपलब्धि की है, इसलिए इनकी भाषामें आक्रामक गुण नहीं हैं, पर ये मध्य श्रेणीके उन लोगोंको अपने विचारोंके अनुकूल बना लेनेकी शक्ति रखते हैं जिन्हें समा- जके अत्यन्त निचले और उपेक्षित स्तरोंका प्रत्यक्ष अनुभव नहीं है। (३) तीसर के हैं, जिन्होंने इवामें उड़ते हुए विचारों को पकड़कर छन्दके फ्रेममें बाँधा है। इनमें अधिकतर कवि-सम्मेलनोंके वे अखाड़ेवाज कवि हैं जो प्रत्येक महत्त्वपूर्ण विषयका कारण किसानों और मजदूरोंको ही बताते हैं। (४) चौथी श्रेणीके कवि गरीबोंकी ओर मानयताके विचारसे आकृष्ट हुए हैं। वे उन्हें शोषित समझ कर शोधकोंके विरुद्ध पाठकको उत्तेजित करनेके लिए नहीं