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हिन्दी साहित्य की भूमिका
 


नताके संस्कार झड़ जॉय । वे ऐसी उपमाओं, ऐसे रूपकों और ऐसी वक्रो- क्तियोंका व्यवहार करते हैं जो केबल नवीन ही नहीं, अदभुत भी ऊँचे । इस श्रेणीका कवि अनायास ही, अपनी प्रियाक प्रेमकी महत्ता दिखाते समय, कह सकता है-हे प्रिये, तुम सूर्यसे भी बड़ी हो, समुद्रसे भी, मेढ़कसे भी, कुकुरमुत्तेसे भी। यहाँ मेढक और कुकुरमुत्ता केवल पाठकके चित्तको झकझोरनेके लिए ही व्यवहृत होंगे, यद्यपि उनका अंतर्निहित तच यह हो सकता है कि समुद्र और सूर्य अपनी महत्तामै जितने सत्य हैं उतने ही सत्य मेढ़क और कुकुरमुत्ते भी हैं। ठीक इसी प्रकारकी उक्तियाँ हिन्दीमें अभी नहीं हुई हैं पर इस जातिकी बहुत हुई है। कवि महानगरीकी सड़कोंपर घूमता हुआ उसकी अट्टालिकाओंमें बैठी हुई प्रतीक्षा-परायण नवोढ़ा या पार्शमें उद्विग्न-भावसे टहलते हुए प्रेमीको नहीं देखता, बल्कि गंदी नालियों और कुष्टजर्जर पीपबाही शव-कल्प शरीरोंको देखता है। सिद्धान्ततः उसकी दृष्टि में नवोढा या उद्विग्न प्रेमी अपने आपमें जितने सत्य हैं, उतने ही सत्य गंदी नालियाँ और दुर्गधित शरीर भी हैं। परन्तु दूसरेका उल्लेख वह झकझोर देनेके लिए और अपने नवीन विचारोंको 'यूरे जोरसे हृदयंगम करानेके उद्देश्यसे ही करता है । इन दो बातोंके सिवा जिन. निर्वैयक्तिक कवियोंका लक्ष्य अपनी कविताको अपढ़ जनता तक पहुँचाना है, उनकी भाषामें भी सरलताकी प्रवृत्ति दिखाई दी है। पुराने रास्तेपर चलनेवाले कवियोंकी भाषामें और कोई खास परिवर्तन तो नहीं हुआ पर लाचाणिक वक्र- ताका हृास होता हुआ जान पड़ता है। आधुनिक हिन्दी कविताकी भाषापर विचार करते समय जो बात सबसे अधिक उल्लेख-योग्य है वह यह है कि अत्यधिक प्रचारित और विज्ञापित होने- पर भी वह अधिकांशमें हिन्दी जाननेवाले पाठकोंके बहुत नजदीक नहीं आ सकी है। इसका कारण यह जान पड़ता है कि कवियों की प्रेरणा अधिकांशमें विदेशी माध्यमके द्वारा आती है और जो शास्त्र आधुनिक युगके मनुष्यको प्रभावित कर रहे हैं उनकी बहुत कम चर्चा हिन्दी भाषामें हुई है। इस युगके मनुष्यकी विचार-धारा मुख्यतः दो यूरोपियन आचार्योस बहुत दूर तक प्रभावित है। ये हैं, मार्क्स और फ्रायड । एकने बहिर्जगत्के क्षेत्रमें और दूसरेने अन्तर्जगत्के क्षेत्रमें, क्रान्ति ला दी है। इनके विचारों और ग्रन्थोंका हिन्दीमें बहुत कम प्रचार हुआ है 'परन्तु इनके द्वारा प्रभावित साहित्यका निर्माण होने लगा है। फिर मानवताकी