पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१४९

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उपसंहार ३२९ आजके भारतीय लेखकके निकट इस प्रश्नका उत्तर जितना ही सहज है. उत्तना ही कठिन भी । आए दिन श्रद्धापरायण आलोचक युरोपियन मत-बाटोको घक्रिया देने के लिए भारतीय आचार्य-विशेषका मत उद्धृत करते हैं और आत्म- गौरवके उल्लासमें घोषित कर देते हैं कि हमारे यहाँ यह बात इस रूपमें मानी या कही गई है। मानो भारतवर्षका मत केवल बही एक आचार्य उपस्थापित कर सकता है, मानो भारतवर्षके हजारों वषक सुदीध इतिहास में नाम लेने-योग्य एक ही कोई आचार्य हुआ है, और दूसरे या तो है ही नहीं, या हैं भी तो एक ही बात माने बैठे हैं। यह रास्ता गलत है। किसी भी मतके विश्यमें भारतीय मनीषाने गडलिका-प्रवाहकी नीतिका अनुसरण नहीं किया है। प्रत्येक बातमें ऐसे बहुत-से मत पाए जाते हैं जो परस्पर एक दूसरेके विरुद्ध पड़ते हैं ! कान्यके उद्देश्य और वक्तव्यके सम्बन्धमें भी मत-भेद है; पर एक बातमें आश्चर्यजनक एकता है। प्रायः सभी पंडित स्वीकार करते हैं कि काव्यका मुख्य उद्देश्य लोको- तर आनन्द और कीर्ति प्राप्त करना है। ऋत्रि कविताके द्वारा अमर हो जाता है, और जैसा कि भामहने कहा है। वह मरकर भी जीता रहता है। जहाँ तक इस बातका सम्बन्ध है, सभी एकमत हैं। एर आनन्द प्राप्त करनेकी पद्धतिम मत- भेद है। कोई तो यह समझता है कि कवि कविता कर लेनेके बाद जब स्वयं आलोचककी हैसियत उसे देखता है तो उसे लोकोनर आनन्द प्राप्त होता है। और कोई यह समझता है कि काब्यके करते समय ही उसे वह आनन्द प्राप्त होता है। जो हो, इस विषयमें सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कवि कीर्ति प्रात करता है। यह कीर्तिकी लिप्सा ही कविताकी सुपिके मूलमें है। शास्त्र-प्रन्थों में कीर्ति प्राप्त करनेके उपायोंका वर्णन है ! कैसे राजाओंको प्रभावित किया जा सकता है; अभ्यास, शास्त्रनिष्ठा और तपोबलसे किस प्रकार कवित्व-शक्तिकी प्राप्ति हो सकती है, इत्यादि बातोंका बड़ा विशद वर्णन किया गया है। राजशेखरकी प्रसिद्ध पुस्तक काव्य-मीमांसासे जान पड़ता है कि कविको कीर्ति प्राप्त करने के लिए कितना आयास करना पड़ता था। एक बात जो यहाँ स्मरण कर लेने योग्य है वह यह है कि यद्यपि कविताकी रचनाके लिए प्रतिमा, शिक्षा और अभ्या- सकी आवश्यकता बताई गई है, पर इस बातपर अधिक जोर नहीं दिया गया कि केवल प्रतिभा ही कवित्वका कारण हो सकती है। सच पूछा जाय तो जिस व्यक्तिने शास्त्राभ्यात नहीं किया वह संस्कृत आलंकारिककी दृष्टिमें कवि ही नहीं