पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१४६

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उपसंहार समूचे भारतीय प्राचीन साईल्यको दो मोटे मोटे विभागोंमें बाँट लिया जा सकता है: एकको साधारण मावसे वैदिक साहित्य और दूसरेको लौकिक साहित्य कह सकते हैं । इतिहासके अध्येताके लिए इन दोनों विभागों के बीच लकीर खींचने में विशेष संकोच नहीं करना पड़ेगा। शुरूसे लेकर तूरानियन आक्रमण तक वैदिक साहित्यकी एक अविच्छिन्न धारा स्पष्ट ही मालूम पड़ती है। तूरानियन आक्रमणके बाद भारतवर्षक दोसौ वर्षका इतिहास अन्धकाराच्छन्न है। यह वही काल हैं जिसे विन्सेंट स्मिथने 'डार्क एज' या तिमिरावृत युग नाम दिया है। सुप्रसिद्ध स्वर्गीय जायसवालजीके उद्योगसे इस युगके राजनीतिक इतिहासपर एक हल्का-सा आलोक पहुँचा जरूर है; पर इस विषयमें दो मत नहीं हो सकते कि यह युग भारतीय इतिहासमें सबसे कम परिचित है । साहित्यिक दृष्टिसे भी यह युग एक तरहसे अन्धकारमें ही है । सन् ईसवीको पहलीसे तीसरी शताब्दी तकका साहित्यिक इतिहास भी अभी तक ढका ही हुआ है। इस प्रकार भारतीय साहित्यका विद्यार्थी सहज ही उसे दो बड़े बड़े हिस्सों में बाँट ले सकता है। पहले भागकी रचनाएँ निश्चयपूर्वक दुसरे विभागकी रचनाओंसे भिन्न कोटिकी हैं। यद्यपि साहित्यिक विभागोंका नाम देना कभी निर्दोष नहीं होता, पर काम चलानेके लिए कुछ नाम रख लेना आवश्यक होता है । इस अध्यायमें हमने पहले भागका नाम वैदिक साहित्य और दूसरेका लौकिक रख लिया है। वैदिक साहित्यके अन्तर्गत संहिता, ब्राह्मण, उपनिषद् बौद्ध ग्रन्थे, जैन आगम और सूत्र-साहित्य शामिल हैं, और लौकिक साहित्यमें परवर्ती युगके काम्य, नाटक, आख्यायिका आदि हैं। ध्यान देनेकी बात यह है कि पूर्ववर्ती साहित्यमें केवल रस-सुष्टि के लिए था होता है । है | वाक-साहित