पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१४१

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रीति-काव्य हुई। अपनी सरसता और तन्मय भावनाके कारण यह ग्रन्थ सारे भारतवर्षमै शीघ्र ही सैल गया। उसके बाद ही जयदेव कविके गीत-गोविन्दमें वह भाष- प्रत्रणा कवित्व अपने चरम उत्कर्षको पहुँचा हुआ पाया जाता है। इसके बाद विद्यापति, चण्डीदास और सूरदासकी रचनाओं में, जो लोक-भाषामें लिखित हैं, राधाकृष्ण और अन्य गोपियों की प्रेमलीलार्य सम्पूर्ण विकसित रूपमें पाई जाती हैं। इसके पूर्व निश्चय ही लोक-मुखमें ऐसी अनेक गीतियाँ काफी प्रचलित रही होगी। वैष्णव धर्मके प्रचारके साथ ही साथ ये लोकनीतियाँ शास्त्र-सिद्ध आचार्यों द्वारा परिष्कृत की गई होगी। यह ध्यान देनेकी बात है कि बंगालके चैतन्यदेवके शिष्य-प्रविष्यों ने, जिनमें मुख्य रूप सनातन और जीवगोस्वामी हैं, इन . लीलाओंको सूक्ष्म रूप दिया था। इन्हीं ग्रन्थों में पहले पहल अलंकारों . और नायिकाओंके विवेचनके लिए राधा-कृष्णकी प्रेम-लीलाओंको उदाहरणके रूपमें सजाया गया नाव्यशास्त्रीय रस-विवेचनाके अन्यान्य अंगोंकी उपेक्षा करके केवल नायिकाओंका वर्गीकरण इस उद्देश्य से किया गया था कि गोपियोंकी विभिन्न प्रकृतिके साथ रसराज श्रीकृष्णके प्रेम-भावके विविध रूपोंको दिखाया जा सके। इस प्रकार लोक-भाषाका यह रूप, जो बहुत दिनोंतक भीतर ही भीतर .. 'पक रहा था, शास्त्रकी उँगली पकड़कर अपने चरम उत्कर्षको पहुँचा । हिन्दीमें वह अपने गीतरूपसे स्वतंत्र होकर विकसित हो सका, अर्थात् अपने प्राचीन फुटकल पद्य रूपमें भी विकसित हुआ। बद्यपि गौड़ीय वैष्णवोंने कुछ पहलेसे ही नायिकाओंका इस प्रकार वर्गीकरण किया था कि उसके बहाने गोपी और गोशालकी केलि-कथायें गाई जा सके, परन्तु उसका कोई प्रत्यक्ष प्रभाव हिन्दीके रीति-कालपर नहीं पड़ा। उज्ज्वल नीलमणिके साथ रीतिकालीन कवियों के लिखे हुए नायिका-भेदके ग्रंथोंकी तुलना करनेसे यह बात स्पष्ट हो जायगी। यह तो निश्चित है कि गौड़ीय वैष्णब मत- वादका प्रभाव ब्रजके भक्तोंपर पड़ा था, कई भक्तोंने उनसे प्रभावित होकर तद्भाव-भावित भजन भी गाये थे, एकाधने नये सम्प्रदाय भी चलाये थे परन्तु रीति-कालपर उनके वर्गीकरण और विवेचनाका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिलता। यहाँतक कि दोनोंके कण्ठस्वर भी एकसे नहीं है। उज्ज्वल नीलमणिमें १. रीति-कालकी कविताका कंठस्वर पश्चिमी अपभ्रंशसे अधिक मिलता-जुलता है। बिहारी आदिकी कविताओंमें तो भाषा, भाव-भंगी सब कुछ उन्हींसे मिलती है। कभी कभी विहारीके समालोचकोंने ऐसे भाव बिहारीमें पाये हैं जो उनके मतसे मुसलमानी संसर्गके