पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१३७

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रीति-काव्य नाट्य-शास्त्र के प्रधान विवेचनीय ग्रंथ नाटक थे और अलंकार-शास्त्रके फुटकल पन। आगे चलकर दोनों धारायें एकमें मिल गई और यह माना जाने लगा कि फुटकल पद्यों में भी रस-विवेचन उतना ही आवश्यक है जितना नाटक या प्रबंध काब्य । इन दो सम्प्रदायों को एकत्र करनेका काम आनन्दवर्धनद्वारा प्रति- ठित ध्वनि-सम्प्रदायके पण्डितोंने किया। आनन्दवर्धनके पूर्ववर्ती आलङ्कारिक रस-विवेचनाको उतना महत्त्व नहीं देना चाहते । यह आलंकारिक सम्प्रदाय निश्चय ही नाट्य-सूत्रोंके बादका है। नाट्य-सूत्रोंका ज्ञान पाणिनिको भी था। भरतके जिस नाट्यशास्त्रका परिचय हमें आज प्राप्त है उसका मूल रूप कैसा था, यह कहना कठिन है। पर इसमें कुछ थोड़ेसे अलंकारोंकी प्रसंगवश चर्चा . है। इससे इतना सिद्ध हो जाता है कि भारतीय नाट्यशास्त्रके वर्तमान रूपको 'पहुँचनेके पूर्व अलंकार शास्त्र कुछ न कुछ रूप धारण कर चुका था परन्तु वह अत्यन्त बचपनको अवस्थामें था। सन् १५०-२५२ ई० का एक शिलालेख 'गिरिनारमें पाया गया है जिसे महाक्षत्रप रुद्रदामाने खुदवाया था। इस गद्यका- ब्यात्मक शिलालेखमैं अलंकारशास्त्रका स्पष्ट उल्लेख है और विद्वान् लोग इस . शिलालेखसे इस नतीजेपर पहुंचे हैं कि अन्ततः उस समय तक अलंकार-शास्त्रके कुछ ग्रन्थ जरूर बन गये होंगे। यह ध्यान देने की बात है कि उस समय तक हालकी सत्तसई लिखी जा चुकी थी और एक सम्पूर्ण अभिनव भावधाराका सम्मिश्रण भारतीय साहित्यमें हो गया था ! अगर यह मत ठीक हो कि पहले काम्यकी रचना हो लेती है लव अलंकारशास्त्रकी रचना होती है, तो मानना पड़ेगा कि अपने आप में स्वतंत्र फुटकल पद्योंकी रचनाकी प्रथा इन दिनोंतक काफी प्रचारित हो गई थी। पर यह समझना ठीक नहीं कि इस प्रकारके अलंकार-शास्त्री अपनी विवेचनामें नाटकोंके श्लोकोंकी विवेचना करते ही नहीं थे; करते थे पर उनको अपने आपमें स्वतंत्र मान कर। यह प्रवृत्ति अर्थात् फुटकल पद्योंको दृष्टिमें रखकर काव्य-विचारकी प्रवृत्ति उत्तरोत्तर बढ़ती गई और इस प्रकारके अलंकार-ग्रन्थ भी भूरिशः रचित हुए। अन्तमें रस और अलंकारको अलग अलग विवेचनीय समझनेवाले दोनों संम्प्रदायोंने मिलकर जब ध्वनि-सम्प्रदायके रूपमें आत्म-प्रकाश किया तो एक बहुत ही प्रभावशाली शास्त्रकी नींव पड़ी जो आगे चलकर केवल काम्धका विवेचक ही नहीं रहा, उसे प्रभावित और अन्तमें अभिभूत भी कर सका। आगे चलकर काव्य- विवेचनाके नियमोको दृष्टिमें रखकर कृषि लोग कविता लिखने लगे और