पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१३५

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'नीति-काव्य ११५ बहुतसे इतिहास-लेखक इस भारतीय परंपराको ठीक ठीक नहीं समझ सकनेके कारण बहुत-सा व्यर्थका वाद बढ़ाते हैं और किसी नतीजेपर न पहुँच सकनेके कारण अटकल लगाया करते हैं। चंद वरदाईके 'पृथ्वीराजरासो में ऐसी बहत-सी कल्पित घटनायें हैं जिनके कारण पृथ्वीराजरासोको केवल जाली ग्रन्थ बताकर ही मौन धारण नहीं किया है, चंदको जाली कवि भी कहा गया है। नरपति -नाल्हके बीसलदेवरासोकी घटनाओंने भी इसी प्रकार पांडित्यगत झमेलोको खड़ा किया है। जायसीके पदमावतमें वर्णित अलाउद्दीन और भीमसिंह तथा पत्रावती और सिंहलद्वीप आदिकी घटनाओंने पण्डितोंको बहुत दिन तक उलझा रखा था और बड़े बड़े विद्वानोंको सिर खपा खपा कर यह सिद्ध करना पड़ा है कि ये बातें निराधार हैं। वस्तुतः इन काव्य-ग्रन्थों में बहुत-सी लोक-प्रचलित गाथायें मिन्न भिन्न ऐतिहासिक व्यक्तियों के नामसे जोड़ दी गई हैं। उस युगके कवि-लोग भी इसमें कोई अनौचित्य नहीं देखते थे और आश्रयदाता लोग भी इसमें कोई दोषं नहीं देखते थे। वस्तुतः गोस्वामी तुलसीदासजीने जब रामायण लिखा था कि ' कीन्हें प्राकृत जन गुन-गाना । सिर धुनि गिरा लागि पछिलाना।' तो उनका मतलब केवल राजाओं या आश्रयदाताओंके गुण-गानसे ही नहीं था बल्कि लोक-कथानकोंसे भी था। यह वक्तव्य ही बतलाता है कि उन दिनों लोक-प्रचलित कथानकोंको आश्रय करके बहुत ग्रंथ लिखे जा रहे थे। गोस्वामीजीका शक्तिशाली 'रामचरित मानस' जहाँ हिन्दी साहित्यको अक्षय्य मधुसे आप्लावित कर सका वहाँ उसने एक बड़ा भारी अपकार भी किया । वे सारे प्राकृत जन गुन-पान'-मूलक काव्य सदाके लिए लुप्त हो गये। जिस समाजमें रामायणका प्रभाव नहीं पड़ सका उप्स मुसलमानी समाजकी ही कृपासे मुसलमान कवियोंकी लिखी हुई कुछ प्रेम-गाथायें उपलब्ध हुई हैं । पदमावतसे ही पता चलता है कि उस जमाने में सपनावती, मुगधावती, मिरगावती, मधुमालती. प्रेमावती आदिकी कथायें लोकमें प्रचलित थीं । इनमें मृगावती और मधुमालतीकी कहानियोंका आश्रय करके लिखे हुए दो ग्रंथ (पहला कुतवनका और दूसरा मंझनका) मिल भी चुके हैं। ऐसी और अनेक कहानियाँ भी लोक- 'भाषामें प्रचलित रही होगी और उनपर ग्रंथ भी लिखे गये होंगे, कमसे कम उनको आश्रय करके बनाई हुई गीतियोंसे ग्रामीण जनता अवकाशके समय मनो- रंजन तो जरूर करती होगी,-परन्तु, उनमेंका अधिकांश अब लुप्त हो गया है। हिन्दी साहित्यमें इन कहानियोको आश्रय करके लिखी हुई दो प्रकारकी गाथाओंका