पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१३४

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११४ - - हिन्दी साहित्यकी भूमिका रचनायें आई उसका कारण आभीरोंका संसर्ग था। ये फुटकर कवितायें, अही- रोंकी प्रेम कथायें और उनके गृहचरित्र लोक-साहित्यमें अत्यधिक लोकप्रिय हो गये थे और उनकी शक्ति और सरसता पंडितोंसे छिपी नहीं रही । उसने प्रत्यक्ष रूपसे प्राकृत और संस्कृत के साहित्यको प्रभावित किया । उसी प्रभावके फलस्वरूप संस्कृत और प्राकृतमें अपने आपमें स्वतंत्र ऐहिकता परक फुटकल पद्योंका प्रचार हुआ। पर अपभ्रंशमें, जो निश्चयपूर्वक पहले आभीरोंकी और बाद में उनके द्वारा प्रभावित आर्यभाषा थी, उसकी धारा बराबर जारी रही और उन दिनों अपने पूरे वेगमें प्रकट हुई जिन दिनों संस्कृत और प्राकृतके साहित्य पहले ही बताये हुए नाना कारणोंस लोक-रुचिके लिए स्थान खाली करने लगे। हमारा मतलब हिन्दी साहित्यके आविर्भाव-कालसे है। यह याद रखना चाहिए कि यहाँ तक आते आते इसमें अनेकानेक अन्य धाराओंका भी प्रभाव पड़ा होगा और हिन्दीमें यह धारा जिस रूपमें प्रकट हुई वह मूल अपभ्रंश-धारासे बहुत कुछ भिन्न हो गई थी। किन अंशोंमें भिन्न थी और किन प्रभावोंसे युक्त थी, यह विचार करनेके पहले यह विचार किया जाय कि उस अपभ्रंश कवितामें किस प्रकारकी रचनायें थीं। परवर्ती-कालकी अपभ्रंश रचनाओंसे अनुमान होता है कि दो तरहकी रचनायें इस भाषामें शुरू शुरूमें ही रही होंगी- (१) ऐहिकतापरक फुटकल पद्य और (२) लोकप्रचलित कहानियों के गीतरूप । संसारके समस्त लोक-साहित्यमै ये दो प्रकारकी रचनायें पाई जाती हैं। जातिकी संस्कृति और धर्ममतके अनुसार इनके ऊपरी आकार-प्रकारमें परिवर्तन होते रहते हैं। अपभ्रंशकी कविताओंके आदि स्वरूपके विषयमें विशेष महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें आमुष्मिकताकी चिन्ता बहुत कम थी। लोकपचलित कहानियोंके गीतरूपका प्राचीन संग्रह बहुत कम मिलता है,- नहीं मिलता है, कहना ज्यादा ठीक होगा क्योंकि जो कुछ मिलता है उसमें काफी , परिवर्तन हो गये हैं। भारतीय लोक-कथानकोंकी एक विशेषता यह रही है कि वे सदा किसी ऐतिहासिक न्यक्तिको आश्रय करके रचित होते हैं पर ऐतिहासिक घटना-परम्पराका उनमै नितान्त अभाव होता है। कल्पना भारतीय कविकी प्रधान विशेषता है ऐसा भी देखा गया है कि बहुतसे कवि अपने आश्रयदाता- ओका जीवनचरित लिखते समय भी ऐसी बहुत-सी लोकप्रचलित अद्भुत चम- कारात्मक कहानियाँ उनमें जोड़ देते हैं जो विशुद्ध कल्पनाकी उपज होती है।