पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१३०

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- हिन्दी साहित्यकी भूमिका पातिव्रत धर्मका खूब बखान किया है । साधनामें भक्तको भी इस व्रतका पालन करनेका विधान किया है और वीरोंका सम्मान तो दादूसे अधिक अन्यत्र दुर्लभ ही है। रज्जबदास निश्चय ही दादुके शिष्योंमें सबसे अधिक कवित्व लेकर उत्पन्न हर थे। उनकी भाषामें भी राजस्थानीपन और मुसलमानीपन अधिक है, तथा- कथित शास्त्रीय कान्य-गुणका उसमें अभाव है फिर भी एक आश्चर्यजनक विचार- प्रौढ़ता, वेगवत्ता और स्वाभाविकता है और लोग जिसको कई पदमें कहते हैं रज्जब उस तत्त्वको सहज ही छोटे दोहेमें कह जाते हैं। इनके वक्तब्य विषय भी वहीं है जो साधारणतः निर्गुणभावापन्न साधकोंके होते हैं पर साफ और सहज अधिक। दादूदयालकी शिष्य-परम्परामें और भी अनेक सन्त हुए जो कविता करते थे पर उनकी 'कविता' कविताका स्थान नहीं पा सकी। जगजीवन साहब इसी परम्परामें हुए थे जिन्होंने सतनामी सम्प्रदाय चलाया। इनकी ९३ बानियाँ भी साधारण कोटिकी हैं।