पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१२३

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भक्ति-कालके प्रमुख कवियोंका व्यक्तित्व वादके विरुद्ध सगुणवादका पक्ष स्थापन किया है। इनके बारे में प्रसिद्ध है कि 'और सब गदिया, नंददास जड़िया ।' स, pahei तुलसीदास डॉक्टर ग्रियर्सनने कहा है कि बुद्धदेवके बाद भारतमें सबसे बड़े लोकनायक तुलसीदास थे। ये असाधारण प्रतिभा लेकर उत्पन्न हुए... जिस युगमें इनका. जन्म हुआ था उस युगके समाजके सामने कोई ऊँचा आदर्श नहीं था। समाजके उच्च स्तरके लोग विलासिताके पंको उसी तरह मम थे जिस प्रकार कुछ वर्ष पूर्व सूरदासने देखा था। निचले स्तरके पुरुष और स्त्री दरिद्व, अशिक्षित और रोग-प्रत्त थे। बैरागी हो जाना मामूली बात थी। जिसके घरको संपत्ति नष्ट हो गई या स्त्री मर गई, संतारमें कोई आकर्षण नहीं रहा, वही चट सन्यासी हो गया। सारा देश नाना सम्प्रदायके साधुओंसे भर गया था। 'अलख' की आवाज गर्म थी हालाँ कि ये 'अलखके लखनेवाले' कुछ भी नहीं लख सकते थे। नीच समझी जानेवाली जातियों में कई पहुँचे हुए महात्मा हो गये थे, उनमें आत्म-विश्वासका संचार हो गया था। पर, जैसा कि साधारणतः हुआ करता है, शिक्षा और संस्कृतिके अभावमें यही आत्म-विश्वास / दुर्वह गर्वका रूप धारण कर गया था। आध्यात्मिक साधनासे दूर पड़े हुए ये गमढ पंडितों और ब्राहाणोंकी बराबरीका दावा कर रहे थे। परंपरासे सुविधा- भोग करनेकी आदी ऊँची जातियाँ इससे चिढा करती थीं। समाजमें घनकी भयौदा बढ़ रही थी। दरिद्रता हीनताका लक्षण समझी जाती थी। पंडितों और ज्ञानियोंको समाजके साथ कोई भी सम्पर्क नहीं था। सारा देश विशंखल, परस्पर विच्छिन्न, आदर्श-हीन और बिना लक्ष्यका हो रहा था। एक ऐसे आदमीकी । आवश्यकता थी जो इन परस्पर विच्छिन्न और दूर-विभ्रष्ट-टुकड़ोंमें योग-सून स्थापित करे । तुलसीदासका अविर्भाव ऐसे समयमें ही हुआ। __ भारतवर्षका लोकनायक बद्दी हो सकता है जो समन्वय कर सके। क्योंकि भारतीय समाजमें नाना भाँतिकी परस्परविरोधिनी संस्कृतियाँ, साधनाएँ, जातियाँ, आचारनिष्ठा और विचार-पद्धतियाँ प्रचलित हैं। बुद्धदेव समन्वयकारी थे,, गीतामें समन्वयकी चेष्टा है और तुलसीदास भी समन्वयकारी थे। वे स्वयं नाना प्रकारके सामाजिक स्तरोंमें रह चुके थे। ब्राह्मण-वंशमें उनका जन्म हुआ था, दरिद्र होनेके कारण उन्हें दर दर भटकना पड़ा था, गृहस्थ-जीवनकी सबसे