पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१२२

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१०२ हिन्दी साहित्यको भूमिका गृहस्थ जीवन विलासिताका जीवन था, मिथ्याचार और फरेचका जीवन था और यौवन-मद, जन मद, धन-मद, विध-मद, भारी,' का जीवन था। इसी- लिए इस समाजसे वैराग्य ग्रहण करना उनका मत था। वे तुलसीदासको भाँति दृढचेता सेनानायक नहीं थे जो समाजकी कुरीतियोंसे कुशलतापूर्वक बाहर निकलकर उसपर गोलाबारी आरम्भ कर दें । नन्ददासकी तरह पर-पक्षकी युक्तियोंको तर्कबलपर निरास करना भी वे नहीं जानते थे। वे केवल श्रद्धालु और विश्वासी भक्त थे जो झगड़ोंमें पड़नेके ही नहीं। भक्तोंमें मशहूर है कि सूरदास उद्धवके अवतार ये। यह उनके भक्त और।

  • कवि-जीवनको सर्वोत्तम आलोचना है। बृद्भागवतामृतके अनुसार उद्धव भग-।

वानके महाशिष्य, महाभृत्य, महामात्य और महाप्रियतर थे। वे सदा श्रीकृष्णके साथ रहते थे। शयनके समय, भोजनके समय, राज-कार्यके समय,-कभी भी भगवान्का साथ नहीं छोड़ते थे, यहाँ तककी अन्तःपुरमें भी साथ रहते थे। केवल एक बार उन्होंने भगवानका साथ छोड़ा था और वह उस समय जब उन्हें भगवान्ने अजमें गोपियों की खबर लेनेको भेजा था। इस बार उन्हें भगवत्संगसे दूना आनन्द मिला था। उनके तीन काम थे, भगवान्की पद-सेवा, उनसे परिहास करना, और क्रीड़ामें साथ रहना । पहले काममें वे इतने तन्मया रहते थे कि अबोध लोगोंको यह भ्रम हो जाता था कि वे पागल हो गये हैं। सूरदासके जीवनका यही परिचय है। उद्भवके सभी गुण उनमें वर्तमान थे। : अपने काच्यमें एक ही जगह उन्होंने भगवान्का साथ छोड़ा है, भ्रमर-गीतमें और इस बातमै कोई सन्देव ही नहीं कि इस अवसरपर सूरदासको भी दूना रस मिला था। इसी तरह इस कथनका यह भी अर्थ है कि सुरदासकी भक्ति में दास्य, (प्रीति-रति,) सख्य और मधुर इन तीनों भावोंका सम्मिश्रण है। HOD नन्ददास ये सूरदासकी अपेक्षा तार्किक ज्यादा और कवि कम थे। अष्टछापके कवियोंमें सूरदासके बाद नंददासका ही स्थान है । उनकी भाषा ताफ और मार्जित, विचार-पद्धति शास्त्रीय और वल्लभाचार्यके अनुकूल, तथा भाव असाधारण थे। भ्रमरगीतमें उद्धव और गोपियोंके संवादमें इन्होंने बड़ी मार्मिकताके साथ निर्गुण-