पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/११३

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मध्य-गुगके सन्तका सामान्य विश्वास मन, वचन और कर्मसे इनका स्मरण करना ही सार हैं। इसी प्रकार नानक, दादू आदि संतांने भी नामका माहात्म्य वर्णन किया है। दादूने ताया है कि अमुक नामने ही मति, बुद्धि, ज्ञान, प्रेम, श्रीति है। दरिया साहब कहते हैं कि नामके बिना संसारसे छुटकारा नहीं मिल सकतः । साधु-संग और रामभजनके बिना काल निरन्तर लूटता रहेगा। इस प्रकार नामकी अपार महिमाके सम्बन्धमें सभी संत एकमल हैं और सभी जानते हैं कि विधियोंमें सबसे श्रेष्ठ विधि रामनामका जपना है और निषेधको सिरताज है उसे भुला देना। जिसने नामपर विश्वास कर लिया उसने सब आनन्द पा लिया और उसके सुन्न दुःख दूर हो गये । वह प्राणी धन्य है । | प्रेमदयके जो क्रम सगुणोपासक भक्तोंने निश्चय किये हैं वे सभी भक्तोंमें समानरूपसे समादृत हैं ! भक्तियुमके साहित्यमें इन नौ वालोंकी भूरि-भूरि वर्णन पाया जाता है। इनकी चर्चा पहले ही हो चुकी है । १ कबीर कहै मैं कथि गया कथि गया ब्रह्म महेस । राम नाँव ततसार है सब काहू उपदेस । भगति भजन हरि-सँव है दूजा दुक्ख अपार । मनसा वाचा कर्मना कबीर सुमिरन सार । ५ साहिबजीके नाउँमाँ मति, बुधि, ज्ञान विचार । प्रेम प्रीति सनेह सुख दादू सिरजनहार ।। ३ नाम विना भई करम ने छुटै है। | साधुसंग और रामभजन बिन काल निरंतर लैटै ।। ४ नाम-सुमिरन सब विधिहू राज रे।। नामको बिसारिबौ निषेध सिरताज रे ॥ -विनयपत्रिका ५. नाम-प्रतीत भई जा जनक लै अनन्द दुख दुरि रह्यौं ।

  • सूरदास धन-धन वे प्रानी जे हरिको क्रत लै निबहौ ।। ६ आदौ श्रद्धा ततः साधुसङ्गोऽथ भजनक्रिया ।

ततोऽनर्थजवृत्तिः स्यात्ततो निष्ठा रुच्चिस्ततः ।। अथासक्तिस्ततः भाबस्ततः प्रेमाभ्युदञ्चति । साधकानामगं अंग्णः प्रादुर्भावे भवेक्रमः }} ---भक्तिरसामृतसिन्धुः । .: ।