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हिन्दी साहित्यकी भूमिका इसी तरह इस युगमैं भक्तके समान भगवान्को समझनेकी प्रवृत्ति लगभग । सभी भक्तोंमें समान रूपसे पाई जाती है। यह भी कहा गया है कि रामसे अधिक मकर दासा । इस कथनका अर्थ यह है कि प्रेमकी दुनिया बड़े-छोडेका कोई सवाल नहीं । भगवान् प्रेमके वश में हैं । सूरदास कहते हैं कि भुरारि प्रेमके वशमें हैं, प्रीतिके कारण ही उन्होंने नटवर-वेश धारण किया प्रीतिवश ही उन्होंने गिरिराज धारण किया , प्रीतिके वश ही माखन चुराया, प्रीतिके कारण ही उनकी सबसे अधिक प्रिय नाम 'गोपी-रंबन' है, प्रीतिके वश ही मल तरुओंको मोक्ष दिया ।' +अधिकतर इस भावका विकास सगुणोपासक भक्तोंमें ही पाया जाता है, पर निर्गुण मतवादी भक्त भी इस बातपर काम झोर नहीं देते । दादू कहते हैं कि साधुकी रुचि है राम जपनेकी और रामकी रुचि है साधुको जपनेकी । दोनों ही एक भावकै भावुके हैं, दोनों के आरम्भ समान हैं, कामनाएँ समान हैं ।X' वैष्णव भक्तोंमें कहानी मशहूर है कि एक बार भगवान्ने रुक्मिणीसे मजाक कहा कि मैं तुम्हें हर ले आया था, तुम्हारा वास्तविक प्रेमी कोई दूसरा
- पौत्तर खण्ड ( बिष्णुस मा बैष्णवकी पूजा श्रेष्ठ है।)
अराधनानां सर्वेषां विष्णेयरधनं परम् । तस्मात्परतरं देवि तदीयानां समर्थनम् ॥ औरअर्चर्यित्वा तु गोविन्दं तदीयान् नादयेत्तु यः । न स भागवते ज्ञेयः केवलं दाभिकः स्मृतः ॥ -भागवत ११ । १९ । २१ * प्रीति बश्यमें हैं मुरारी । प्रीति वइय नटवर-वेश धरये प्रीतिवश करन गिरिराज धारी। प्रतिके वश्य भये माखन चोर प्रीतिकै वश्य देंावरी बँधाई ॥ प्रतिके वश्य गोपीबन प्रिय नाम प्रतिकै बश्य तरु अमल मोक्षदाई ।। -इत्यादि। ५ राम जपें रुचि साधुको, साधु जपै रुचि राम । दढ़ दोनों एक हँग, सम अरंभ सम काम ।।