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मध्य-थुगके सन्तों को सामान्य विश्वास

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= | कबीरदास, दादूदयाल आदि निर्गुण-मत्वादियोंकी नित्य-लीला और सूरदास, नन्ददास आदि गुण-मतवादियोंकी नियु-लीला एक ही जाति की है। अन्तर यही है कि पहली श्रेणीके भक्तोंके सामने भगवान्के..यक्तिगुत सम्बन्धात्मक रूपके.साथ. उसकी रूपातीत अनन्तता वर्तमान रहती है और दूसरी श्रूणीके भक्तों के सामने भगवान् सदा प्रतीकृरूपमें आते हैं और इसीलिए उनकी । अनन्तता और असीमता ओझल-सी हुई हूती है । । | मुध्य-युगके भक्ति-आन्दोलनकी एक बड़ी विशेषता, बुह है कि. भुत.और भगवान्को समान बताया गया है। प्रेमका आधार ही समानता है। गुरुको भगवानुका रूप बताया गया है। ये दोनों बातें साधारणतः भक्तिके भावावेश *प्रशंसात्मक अर्थवाद समझी जाती हैं । अर्थात् यह मान लिया जाता है कि भावावेशमें भक्तको भगवान् कहा गया है। इसका यह अर्थ नहीं है कि सचमुच भक्त भगवान् है, बल्कि इसका मतलब इतना ही है कि भक्त महान् है । कहीं कई तो भक्तको भगवान्को भी बढ़कर बताया है । यह ध्यान देने की बात है किं तन्त्र-साधनामें गुरुको शिवके समान स्थान दिया गया है । सद्दजिया मतके जो बैद्धि दोहे और गान पाये गये हैं उनमें गुरुकी भक्तिके बहुत उपदेश है। एक दोहेमें कहा गया है कि गुरु सिद्धसे भी बड़े हैं । गुरुकी बात बिना विचारे ही करनी चाहिए। कबीरदासने भी गुरुको गोविन्दके समान कक्षा है । असलमें मध्ययुगके भक्ति-साहित्यमैं गुरु स्थान बहुत बड़ा है । वैष्णव ! भक्तोंके मतले गुरु दो प्रकारके हैं-शिक्षा-गुरु और दीक्षा-गुरु । शिक्ष-गुरु स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण हैं और सिद्धावस्थामै दीक्षागुरु भी भगवान्के ही तुल्य हैं। कुछ विद्वानोंको खुले है कि गुरुमहिमामध्ययुगके साधकोंके अपने है । पूर्ववर्ती तान्त्रिकों और सहजयानके साधकोंसे उत्तराधिकारके रूपमें मिली थी । १ भगति भगत भगवंत गुरु, नाम रूप बघु एक ।। इनके पद वंदन किये, नासै बिधन अनेक | भक्तमाल २ म० मा हरप्रसादशास्त्री --- बौद्ध गान श्रेओ देहा', भूमिका पृ० ६ ३ गुरु गोबिंद है एक है, दूजा यहु आकार । आपण मैट जीवत मरै, तर पावै कंरतार ।। -~-कीरग्रन्थावली