पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१०२

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| हिन्दी साहित्यकी भूमिका श्रीकृष्णकै गुरुजन वात्सल्य भावसे उनसे प्रेम करते थे। इस प्रकार भजन करनेवाले भक्त वात्सल्य स्वभावके होते हैं । मुधुर रस सुब्से श्रेष्ठ है। इसे उज्ज्वल रस भी कहते हैं। इसका आश्रयरूप आलंबन ब्रजसुन्दरियाँ थीं । आचार्यों ने इसका विस्तृत विवेचन भक्तिरसामृतसिन्धु अादि ग्रन्थों में किया है। इस रसका ससे श्रेष्ठ आलंबन श्री राधिका हैं। बिहारी कविन.*ज्यों ज्यों भी प्रेम-रस त्यों त्यों उज्ज्वल होय” उक्तिमें इसी परम.रसकी ओर इशारा किया है। इस विषवका कुछ विस्तृत विवेचन हमने अपने ‘सूर-साहित्य में किया है। इन पाँच रसों उत्कर्षापकर्षका विचार भी किया गया है पर इसमें मत-भेद { है। श्रीकृष्ण रूपके उपासकॉका कहना है कि शान्त रस सबसे नीचे है, उसके ऊपर दास्थ, उसके ऊपर सख्य, फिर वात्सल्य और सबके ऊपर मधुर या उज्ज्वल रस है। यह भी बताया गया है कि लोकमें यह रस सर्वथा उलटा है, क्योंकि यह जगत् मायाके दर्पयाके प्रतिबिंबके समान है जिसमें इम जड़ रूपमैं भगवानुकी छाया देख रहे हैं । दर्पणमें जो चीज़ सबसे ऊपर दिखती है वह असलमें सबसे नीचे होती है और जो सबसे नीचे दिखती है इह वस्तुतः सबके ऊपर रहती है। है इसीलिए मधुर रस जब भगवद्विषयक होता है तो सबके ऊपर रहता है और जब | जड़विषयक होकर शुगर रस नाम ग्रहण करती है तो सबके नीचे पड़ जाती है। गोस्वामी तुलसीदासने अपने ग्रथों में इस तत्वका प्रत्याख्यान तो नहीं किया। पर अप्रत्यक्ष रूपसे, मानों प्रत्याख्यान करनेके ही उद्देश्यसे,,प्रसंग अति ही वे दास्य या प्रीति रतिकी स्तुति कर जाते हैं। इस प्रकारके एक प्रसंगपर वे कहते : हैं, सेवक-सेव्य भावके बिना संसार तरना असंभव है, ऐसा विचार कर रामपदका भजन करना चाहिए। एक दूसरे प्रसंगपर भगवान् स्वयं अपना सिद्धान्त बताते हुए कहते हैं कि जीवोंमें मुझे सबसे प्रिय मनुष्य हैं; उनमें भी ब्राह्माण, उनमें भी वेदज्ञ, उनमें भी निगम धर्मानुयायी, उनमें भी विरक्त, उनमें भी ज्ञानी, उनमें भी विज्ञानी और इन ससे अधिक प्रिय मेरा वह दास है जिसे मेरी गति छोड़ और आशा नहीं है मैं जोर देकर सत्य सत्य कह रहा हूँ 5 बांगुनक पराँह री माया-दर्पन बीच है। गुन गुन न्यारे भये अमल वारि जल कीच' ।। सखा सुनु श्यामके। -औददास