पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/१०

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माधुरी-रागानुगा और वैधी भक्ति-दस निषिद्ध आचार-दो मूल तत्व----पाँच त्याज्य कर्म-प्रेभोदय क्रम-स्वभाड़ और रति--- निविशेष और सविशेष भगवद्रुप ---- शान्त स्वभावके भक्त-दास्यके सख्यॐ----उज्ज्वल रस ---दर्पणकी उपमा---तुलसीदासका मतकृष्णभक्तों और राम-भक्तों के विशेष दृष्टिकोण । ... पृष्ठ ७०-८४ मध्ययुगके सन्तोंका सामान्य विश्वास । भक्त और भगवानका संबंध-ब्रह्म, परमात्मा और भगवान्--- भगवान्कै साथ लीला--भक्त और भगवान्की समानता--प्रेम ही परम पुरुषार्थ-भक्तिकी महिमा-नाम-माहात्म्य-रामसे बड़ा नाम-आत्मसमर्पण । •• ... पृष्ठ ८५-९४ भक्तिकालके प्रमुख कवियोंका व्यक्तित्व कबीर नान्नक-सूरदास -नन्दनदास -तुलसीदास ---दादूसुन्दरदास-~-२६ । •०० पृष्ठ १५-११० रीति-काव्य दो भिन्न प्रकृति के आर्य---ऐहिकतापरक काव्यका आविर्भावहालकी सत्तसई--हालका काव्य–ण और आभीर---रासो अदि कल्पित कथायें--अपभ्रंशसे दो प्रकृतिको कविताको विकास-- अलंकारशास्त्रमें दो धारायें--ध्वानेसम्प्रदायु--बृहत्यी ----लिकालीन हिन्दी कविता--गृहे लोक साहित्य नहीं और शास्त्रीय काव्य भी नहीं है--स्तोत्रसाहित्य---गोपी और गोपालोंके प्रेम-काव्य:राधा-कृष्णकी प्रेम-लीलाका साहित्यमें प्रयोग-गौड़ीय वैष्णवोंके नायिकाभेदसे रीति काब्यके नायिकाभेदकी तुलना---वात्स्यायनका काम्-सूत्रस्वाधीन चिन्ताके प्रति अवज्ञाको भाव। ... पृष्ठ १११-१५ | उपसंहार भारतीय साहित्यके दो मोटे मोटे विभाग---कवि और कारुवैदिक साहित्यकार परिचय-जन्मांतर-व्यवस्था और कर्मफलवादका साहित्य पर प्रभाव-~-काव्यका उद्देश्य लोकोत्तर अानंदकी प्राप्ति कैसे होती