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अध्याय ४ व्रज का कृष्ण सम्प्रदाय ( १५००-१६०० ई० ) ३४. वल्लभा चारज---ब्रजांतर्गत गोकुल के निवासी । जन्म १४७८ ई० । | रागकल्पद्रुम । यद्यपि वल्लभाचार्य धार्मिक सुधारक अधिक थे, साहित्यिक कम, फिर भी मैं उनके सम्बन्ध में रामानन्द की अपेक्षा कुछ अधिक विस्तार से कहूँगा, एक तो उनके अधिक महत्व के कारण, दूसरे इसलिए भी कि उनके संबंध में मैं कुछ ऐसे विवरण दे सकता हूँ, जो अभी तक यूरोपीय विद्वानों को सुलभ नहीं हो सके हैं। वल्लभाचार्य जी राधावल्लभी संप्रदाय के प्रसिद्ध प्रवर्तक हैं । हरिश्चन्द्र के अनुसार इनके पिता का नाम लछमन भट्ट ( मद्रास के एक तैलंग ब्राह्मण ) था, और इनकी माता को इछमगारु । यह तीन भाई थे—रामकृष्ण, वल्लभाचार्य और रामचन्द्र । इनके दोनों भाई प्रसिद्ध वैष्णव ग्रन्थकार थे । लछमन भट्ट अयोध्या में रहते थे. और वे काशी की यात्रा कर रहे थे, जब कि मार्ग में ही बिहार के चम्पारन जिले में। बेतिया के पड़ोस में चौरा नामक गाँव के पास मिती बैशाख ब्रदी ११, रविवार, सं० १५३५ ( १४७८ ई० ) को वल्लभाचार्य पैदा हुए। | बनारस में ५ वर्ष की वय में इन्होंने मध्वाचार्य, (रागं कल्पद्रुम) से पढ़ना प्रारंभ किया और वह अपने पिता की मृत्यु तक रहे। इसके पश्चात् वे भ्रमण- शील जीवन बिताते रहे और बिंजय नगर के राजा कृष्ण देव, स्पष्ट ही कृष्ण रायलू, के दरबार में गए, जो १५२० ई० के आसपास शासन करता था । यह उन्होंने स्मार्त ब्राह्मणों को शास्त्रार्थ में पराजित किया । ( देखिए विलमन, रेलिजस सेक्टस अफ द हिंदूज, पृष्ठ १२०)। हरिश्चन्द्र के अनुसार यह शास्त्रार्थ संवत् १५४८ (१४९१ ई०) में हुआ, जब यह केवल १३ वर्ष के थे। इसी वर्षे इन्होंने ब्रज यात्रा की, जहाँ इन्होंने भागवत पुराण का अध्ययन किया और अंत १. देखिए विलसन कृत, रेलिजस सेक्ट्स आफ द हिन्दज़, पृष्ठ १२० २. प्रसिद्ध महात्माओं का जीवन चरित्र भाग २, पृष्ठ २८ ३ वल्लभ दिग्विजय का · तीसरा खंड देखिए, संवत् १५३५: शाके -बैशाख मास, कृष्ण पक्ष : रविवार मध्यान्ह । इरिश्चंद्र द्वारा उद्धृत द्वारिकेश कुत. पद भी देखिये ।। ' ,