पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/९६

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एक उत्कृष्ट र प्रायः अकेले उदाहरण के रूप में है, जो यह संकेत करती है। कि एक हिंदू मस्तिष्क, जो साहित्य और धर्म के जंजाल से अलग हो गया हो, क्या कर सकता है । यह सत्य है कि आने वाले साहित्यकारों की लंबी सूची में उपदेशपूर्ण, शास्त्रीय, चिकित्सा संबंधी ग्रंथों के भी उदाहरण हैं; परन्तु यह तथ्य अपने स्थान पर स्थिर है कि सोलहवीं शताब्दी के मध्य से आज तक जितने भी हिंदुस्तानी साहित्य के बड़े और अच्छे ग्रन्थ लिखे गए, वे सभी प्रथा की श्रृंखला या भावोच्छ्वास अथवा दोनों से, राम और कृष्ण के बार बार दुहराए जाने वाले विषयों से आबद्ध हैं। रामानंद की चर्चा पहले हो चुकी है । उनके एक मात्र महत्वपूर्ण अनुयायी तुलसीदास हैं, जिनके संबैध में आगे चलकर मैं विस्तारपूर्वक लिखूगा । वल्लभाचार्य और उनके द्वारा प्रतिष्ठापित ब्रज मंडल के कवियों पर विचार करने के पहले यह अच्छा होगा कि दो छोटे-छोटे कवियों की चर्चा करके पथ प्रशस्त कर दिया जाये ।। टि०---पद्मावत का प्रारंभ ९२७ हिजरी ( स० १५७७ के लगभग ) में ही हुआ। इसकी समाप्ति शेरशाह के शासनकाल ( सं० १५९६-१६०० वि० ) में किसी समय हुईं। आखिरी कलाम की रचना ९३६ हिजरी ( सं० १५८५ वि० ) में बंदर के शासनकाल में हुई । नसरुद्दीन जायसी के अनुसार जायसी की मृत्यु ४ रज्जव ९४९ हिजरी को हुई। यह समय सं० १६०० के कुछ पहले ही पढ़ जाता है। --सर्वेक्षण ७०८, तीसरे अध्याय का परिशिष्ट ३२. दील्ह-जन्म १५४८ ई० ।

कोई विवरया नहीं।

|| टि–सरोज के अनुसार दील्ह उक्त संवत मैं उ०' या उपस्थित थे। ३३. नरोत्तमदास--बाड़ी जिला सीतापुर के ब्राह्मण । जन्म १५५३ ई० रागकल्पद्रुम । सुदामा चरित्र ( रागकल्पद्रुम ) के रचयिता ।। , टिo-महेश एवं विनोद ( ७२ ) में सुदामाचरित्र का रचनाकाल सं० १५८२ दिया गया है। सरोज में नरोत्तम दास को सं० १६०२ में ३० कहा गया है। ग्रियसंन में इन्हें सं० १६१० में उत्पन्न माना गया है । कवित्त सवैयों के प्रचलन को ध्यान में रखते हुए सं० १६१० के आसपास "नरोत्तम का जन्म मानना अनुचित नहीं प्रतीत होता । ---सर्वेक्षण ४१५ -- - १. मैं यहाँ और अन्यत्र भी इस शब्द को हिन्दुस्तान संशा के विशेषण रूप में प्रयुक्त कर रहा हूं, न कि तथाकथित हिंदुस्तानी भाषा के रूप में। .