पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/९०

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अध्याय ३ मलिक मुहम्मद जायसी की प्रेम (Romantic) कविता ३०. मलिक मुहम्मद जायसी-अवध के अन्तर्गत जायस के रहने वाले, १५४० ई० में उपस्थित ।। | यह शेरशाह के शासनकाल में १५४० ई० में उपस्थित थे | यह पद्मावत ( राग कल्पद्रुम ) के रचयिता हैं । मेरा विश्वास है कि यह गौड़ीय भाषा में किसी मौलिक विषय पर लिखी हुई अपने देश की एकमात्र और प्रथम पुस्तक है । मुझे ऐसा कोई अन्य बैंथ नहीं ज्ञात है, जिसके अध्ययन में पद्मावत की अपेक्षा अधिक परिश्रम की आवश्यकता हो । यह निश्चय ही अध्यवसायपूर्ण अध्ययन के योग्य है, क्योंकि साधारण विद्वान को इसकी एक भी पंक्ति स्पष्ट नहीं हो सकती, कारण यह कि यह जनसाधारण की विशुद्ध बोलचाल की भाषा में विरचित है। इसके लिए जितनी भी परिश्रम किया जाय, इसकी मौलिकता और काव्यगत सौंदर्य दोनों की दृष्टि से वह उचित ही है। मलिक मुहम्मद अत्यंत पाक मुसलमान फकीर थे । अमेठी के राजा विश्वास करते थे कि उन्हें पुत्र-प्राप्ति और सामान्य धन-धान्य की वृद्धि इसी संत के कारण हुई थी और वे इनके प्रमुख भकों में से थे । जब कवि मरा, वह अमेठी में राजा के किले के फाटक के पास दफन किया गया, जहाँ उसकी कन्न आज भी पूजी जाती है। वह स्वयं अपने काव्य की भूमिका में सूचित करते हैं कि वह सैयद अशरफ जहाँगीर और शेख बुरहान के शिष्य थे और उन्होंने बाद में हिन्दू पंडितों से भी पढ़ा । वह कोई बहुत विद्वान व्यक्ति नहीं कहे जाते, परन्तु अपनी बुद्धिमता के लिए प्रसिद्ध थे। यह इस तथ्य से भी प्रकट है कि उन्होंने जनता के लिए जनता की बोलचाल की भाषा में लिखा । पद्मावत के बनारस संस्करण के पाठ के अनुसार, जो कि अत्यंत अशुद्ध है, कवि ने इसको ९२७ हिजरी ( १५२० ई० ) में लिखना प्रारंभ किया; किंतु संभवतः यह अशुद्ध है क्योंकि वह भूमिका में स्वयं कहते हैं कि सूरवेश का शेरशाह १–शेख बुरहान बुंदेलखण्ड के अन्तर्गत कालपी के रहने वाले थे और कहा जाता है कि यह १०० वर्ष की आयु में '६७० हिजरी ( १५६२-६३ ई० ) में मरे । देखिए; रिपार्ट फ़ कैलोजिकल सर्वे ऑफ़ इण्यिा , भाग २१; पृष्ठ १३१