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अनुच्छेद में 'टि०' के अन्तर्गत बहुत संक्षेप में उनका उल्लेख कर दिया गया है। ये टिप्पणियाँ मुख्यतया 'सरोज सर्वेक्षण' के आधार पर प्रस्तुत की गई हैं। 'सरोज सर्वेक्षण में सारे प्रमाण विस्तार से देखे जा सकते हैं। इस ग्रन्थ में तो 'सरोज-सर्वेक्षण के निर्णय ही टिप्पणी रूप में दिए जा सके हैं। यदि मूल ग्रंथ का अनुवाद मात्र प्रस्तुत किया जाता, तो उससे लाभ की अपेक्षा हानि होने की आशंका थी। अपनी ओर से मैंने पाद-टिप्पणियाँ नहीं के बराबर दी हैं, जहाँ ऐसा किया है, उल्लेख कर दिया है।

मूल ग्रन्थ से मैंने प्रस्तुत ग्रन्थ में कुछ अन्तर कर दिया है। प्रस्तावना एवं भूमिका के अनन्तर मूल ग्रंथ में शुद्धि-पत्र एवं परिशिष्ट और इसी के अंतर्गत तुलसीदास लिखित पंचायतनामे का रोमन प्रत्यक्षरीकरण एवं उसका अँगरेजी अनुवाद था। यह शुद्धि-पत्र देने की आवश्यकता नहीं समझी गई है। इस परिशिष्ट में ग्रियर्सन ने ग्रंथ में वर्णित कुछ कवियों के सम्बन्ध में कतिपय नवीन सूचनाएँ संकलित कर दी थीं। ये सूचनाएँ उन्हें उस समय मिलीं, जब ग्रन्थ यंत्रस्थ हो चुका था। अतः ये उचित स्थान पर नहीं जोड़ी जा सकीं। मैंने इस ग्रन्थ में इन सूचनाओं को प्रसंग-प्राप्त कवियों के विवरण में 'पुनश्च' लिखकर नए अनुच्छेद के रूप में संलग्न कर दिया है। तुलसीदास लिखित पंचायतनामे को भी छठें अध्याय के अन्त में तीसरे परिशिष्ट के रूप में दे दिया है। इस प्रकार तुलसी एवं रामायण सम्बन्धी सारी सामग्री एक साथ आ गई है। यहाँ पंचायतनामा ज्यों का त्यों दिया गया है, उसको रोमन प्रत्यक्षरीकरण नहीं; इसका अँगरेजी अनुवाद ज्यों का त्यों दिया जा रहा है, उसका हिन्दी अनुवाद नहीं किया जा रहा है। मूल ग्रंथ में अनुक्रमणिकाएँ आंग्ल वर्णानुक्रम से हैं, मैंने उन्हें इस ग्रंथ में नागरी वर्णमाला के क्रम से प्रस्तुत किया है। इनमें जो अशुद्धियाँ थीं, उन्हें मैंने यों ही ठीक कर दिया है, टिप्पणी लगाकर अनावश्यक विस्तार नहीं किया है। कवि नामानुक्रमणिका के साथ, सरोज का ग्रियर्सन पर आभार प्रदर्शित करने के लिए, मैंने सरोज वर्णित संगती कवि-सूची एवं सरोज-संवत् भी दे दिया है। कवियों का विवरण देने के पहले ग्रियर्सन ने यह सूचना दी