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५. अनन्यदास--चकदेवा जिले गोंडावासी, ११४८ ई० में उत्पन्न ।

इस कवि के लिए एक मात्र प्रमाण शिव सिंह सरोज है, जिसके अनुसार यह अनन्य योग नाम ग्रन्थ के रचयिता थे। इसमें इस ग्रन्थ से उद्धरण भी दिया गया है। मुझे सन्देह है कि यह वास्तव में एक दूसरे पृथ्वीराज (बीकानेर वाले ) के सम-सामयिक थे, जो कि १६ वीं शती में हुए हैं। ( टाड, भाग १, पृष्ठ ३४३ और आगे, भाग २ पृष्ठ १८६; कलकत्ता संस्करण, भाग १, पृष्ठ ३६३ और आगे, भाग २ पृष्ठ २०३)। देखिए संख्या ७३।

दि०—यह अन्यदास प्रसिद्ध संत अक्षर अनन्य से अभिन्न हैं। अक्षर अनन्य का समय सं० १७१०-९० वि० हैं। इन अनन्यदास के प्रकरण में दिए गए पृथ्वीराज न तो दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान हैं, जैसा कि सरोज में दिया गया है; और न यह अकबर के समसामयिक बीकानेर वाले पृथ्वीराज हैं, जैसा कि ग्रियर्सन का अनुमान हैं। यह दतिया के राजा रामचंद्र के पुन्न एवं सेनुहड़ा के जागीरदार पृथ्वीचंद हैं । अनन्ययोग में अक्षर अनन्य ने पृथ्वीचंद को अनेक बार संबोधित किया है। सर्वप्रथम महेशदत्त ने इन्हें अक्षर अनन्य से भिन्न अन्य अनन्यदास माना और पृथ्वीचंद के पृथ्वीराज चौहान समझने के भ्रम से इनका देहावसान काळ स० १२७५ दिया । सरोज- कार ने इस कवि का विवरण एवं उसकी कविता का उदाहरण महेशदत्त के भाषा काव्य से ही लिया है।

—'सर्वेक्षण ३६/

६. चंद्रकवि-चंद्र यो म्वद्रबरदाई कवि और बंदीजन, ११९१ ई० में उपस्थित ।

राग कल्पद्रुम, ( १ ) सुंदरी तिलक । यह रणथंभौर के बीसलदेव चौहान ( टाड, भाग २, पृष्ठ ४४७ और आगे; कलकत्ता संस्करण भाग २, पृष्ठ ४९२ और आगे ) नामक एक प्राचीन बंदीजन परिवार के थे और अपने वंशज सूरदास के विवरण के अनुसार यह जगात गोत्र के थे ।

यह पृथ्वीराज के दरबार में आकर उनके मन्त्री एवं कवीश्वर दोनों पद । को प्राप्त हुए। सत्रहवीं शती के प्रारम्भ में, मेवाड़ के अमर सिंह (दे० । सं० १९१ ) के द्वारा इनका काव्य संकलित हुआ । यह असम्भव नहीं कि । उसी समय इसको आधुनिकीकरण एवं पुनः संस्कार हुआ हो, जिसके कारण


. १. सूरदास का दंशदक्ष आगे संख्या ३७ पर देखिए ।

२, शासनकाल १५६७-१६२१ ई०; देखिए टाड भाग १, पृष्ठ १३ ( भूमिका ), पृष्ठ ३५० और आगे; कलकत्ता संस्करण भाग १, पृष्ठ १३ ( भूमिका ), ३७१ और आगे ।