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के बीच थे। इन्होंने जयचंद्र प्रकाश नामक महाकाव्य लिखा था

सिंघायचे दयालदास कृत राठौडां री ख्यात में हुआ है ।

—'सर्वेक्षण १२५

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४. कुमारपाल--महाराजा अनहल वाले, ११५० ई० में उपस्थित ।

इसी शती के समाप्ति काल में राजपूताने के किसी अज्ञात कवि ने ‘कुमार पाल चरित' नाम वंशावली लिखी, जिसमें अन्हल के बौद्ध राजा कुमार पाल की वंशावली ब्रह्मा से लेकर इन तक दी गई है । ग्रंथ की एक हस्तलिखित प्रति टाड संग्रह में है । रॉयल एशियाटिक सोसाइटी की सूची में इसका नाम ३१ वीं संख्या पर है। पुनश्चः- १०८८-११७२ ई० में शासन किया । प्रसिद्ध हेमचंद इन्हीं के दरबार में थे।

टि०-कुमारपाल गुजरात के नाथ प्रसिद्ध सिद्धगज जयसिंह के

उत्तराधिकारी थे। इन्होंने सं० ११९९ से १२३० वि० तक राज्य किया । अनहल से अभिप्राय अन्हलपट्टन या अन्हलवाड़ा से है । कुमारपाल चरित की रचना. प्रसिद्ध जैनाचार्य हेमचन्द्र सूरि ने की थी। इससे सिद्धराज जयसिंह एवं कुमारपाल का इतिहास है। इसकी रचना सं० १२१८ और १२२९ के बीच किसी समय हुई । न तो हेमचन्द्र राजपूताने के कवि थे और न कुमार पाल बौद्ध थे । हेमचन्द्र गुजरात के थे और कुमारपाल जैन थे।

—'सर्वेक्षण ७२

अब हम पिथौरा या पृथ्वीराज चौहान, दिल्ली, के समय में पहुँचते हैं। जिसका जन्म ११५९ ई० में और देहावसान ११९३ ई० में हुआ था | यह बहादुर योद्धा ही नहीं थे, साहित्य के बड़े संरक्षक भी थे । यदि हम शिव सिंह का विश्वास करें तो कम से कम इनके दरबारी दो बन्दीजनों की रचनाएँ आज भी उपलब्ध हैं। वे आगे वर्णित ५ और ६ संख्यक कवि हैं ।


१ दाई भाग १, पृष्ठ ८१, ८० टि०, २४१ dि०, २५६, भाग २, पृष्ठे २४२ टि०; कलकत्ता संस्करण भाग १, पृष्ठ ८६, ८७ टि०, २५६ दि०, २७५, भारी ३ पृष्ठ २६६ ।

३ देखिए टोड, माग १, पृष्ठ ९८; कलकत्ता संस्करण भाग १, पृष्ठ १०६ ।

३. इनके जीवन चरित्र और समय के लिए देखिए, टाड भाग पृष्ठ ९५, २५६; कलकत्ता | संस्करण भाग १, पृष्ठ १०३, २७५ ।