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उनके वंश का इतिहास है । प्रताप सिंह ( १५७५ में उपस्थित ) के शासन- . काल में इसका पुनः संस्कार हुआ और जिस रूप में आज यह उपलब्ध है। उसमें प्रताप और अकबर के युद्धों तक का वर्णन है और एक पर्याप्त बड़े अंश में तेरहवीं शती' में चित्तौर पर डाले हुए अलाउद्दीन खिलजी के घेरे को वर्णन है । अतः ऐसा समझा जा सकता हैं कि इस समय इस ग्रन्थ की जो प्रतियाँ उपलब्ध हैं, वे मेवाड़ की उस बोली में हैं, जो १६ वीं शताब्दी के अंत के बाद की नहीं है|

'दि०----स्खुमान रालो के रचयिता तपागच्छीय जैन कवि दौलत विजय, हैं। दीक्षा के पूर्व इनका नाम दलपत था । ग्रंथ की रचना सं० १७६७ और १७९० वि० के बीच किसी समय हुई। इसमें राणा प्रताप के बाद के भी अन्य ७ राजाओं का विवरण है। इसमें वर्णित अन्तिम राजा संग्राम सिह द्वितीय हैं । ग्रंथ राजस्थानी भाषा में है । यह ग्रंथ नवीं शती का नहीं है और न किसी खुमान के ही नाम पर यह रचा गया । खुमान चित्तौड़ के राजाओं की सामान्य उपाधियों में ले एक है। राणा प्रताप के समय में इसके परि- वद्धित होने की बात भी मिथ्या हैं । ---सर्वेक्षण १३७


३. केदर कवि, कवि और वंदीजन, ११५० ई० में उपस्थित ।

शिवसिंह सरोज का कथन है कि यह अलाउद्दीन गोरी के यहाँ थे । अतः यह ११५० ई० के लगभग उपस्थित थे और यदि इनकी कोई भी रचना . सुलभ हो जाय, तो वह उपलब्ध भाषा साहित्य का सम्भवतः प्राचीनतम नमूना होगी । 'इनकी कोई भी कविता हमारी नजर से नहीं गुजरी', और यदि टाड़- संग्रह में वे सुलभ नहीं हैं, तो मुझे आशंका है कि वे खो गई । सम्भवतः इनका उल्लेख टाड में हुआ है, पर मुझे टाड में इनका नाम नहीं मिला। टि°-सरोज में गंग के विवरण मैं एक कवित्त उद्धत है जिसका तृतीय चरण यह हैं- चंद चउहान के केदार गोरी साहि जु के,

      गंग अकबर के बखाने गुन गात हैं।
      

इसके अनुसार केदार किसी गोरी साहि के यहाँ थे । इस गोरी का नाम अलाउद्दीन नहीं था, सम्भवतः शहाबुद्दीन था। शुक्ल जी इस कवित्त को भट्ट भणत मानते हैं। शुक्ल जी के अनुसार यह केदार ( केदर नहीं, जैसा कि ग्रियर्सन ने लिखा है ) कन्नौज के राजा जयचंद के यहाँ सं० १२२४और १२४३ {(rule)} १-टाढ भाग १, पृष्ठ २१४, भाग २ पृष्ठ ७५७; कलकत्ता संस्करण भाग १ ५४ २३१, भाग २, पृष्ठ ८१४