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अभ्यस्त हैं। इसलिए, खेम (संख्या ८७) जैसे कवियों के एक या दो लघु प्रयासों के अनन्तर,१ केशव दास (उपस्थित १५८० ई०) आगे आए और उन्होंने काव्य शास्त्र के सिद्धान्तों को सदा के लिए स्थिर कर दिया। एक स्वच्छन्द कहानी उन्हें कवयित्री प्रवीणराय से सुसम्बद्ध करती है और यह कहा जाता है कि उन्होंने अपनी महान पुस्तक 'कवि प्रिया' उसी के लिए लिखी। सत्तर वर्ष पश्चात्, सत्रहवीं शती के मध्य में, चिन्तामणि त्रिपाठी और उनके भाइयों ने इनके द्वारा स्थापित नियमों को विकसित और पल्लवित किया। इस वर्ग के आचार्य कवियों की समाप्ति अत्यन्त उचित रूप में सत्रहवीं शती के अन्त में कालिदास त्रिवेदी से होती है, जो हजार के रचयिता हैं, जो कि हिन्दुस्तान के इस स्वर्ण-काल की रचनाओं के चयन का सर्वश्रेष्ठे और प्रथम विशाल संग्रह है।

इस युग अर्थात् सत्रहवीं शती के उत्तरार्द्ध में कुछ धार्मिक सम्प्रदायों का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्होंने प्रचुर साहित्य सृष्टि की। प्रमुख सुधारक, जिनके उल्लेख यहाँ किए जा सकते हैं, ये हैं——दादू (उपस्थित १६०० ई०) दादू सम्प्रदाय के प्रवर्तक, प्राणनाथ (उपस्थित १६५० ई०)—प्राणनाथी सम्प्रदाय के प्रवर्तक, गोविन्द सिंह (उपस्थित १६९८ ई०)——सैनिक सिक्ख धर्म के प्रवर्तक और 'ग्रंथ' अथवा उक्त संप्रदाय के पवित्र ग्रंथ के संकलयिता।२

इस स्वर्ण-काल के राजपूत चारणों का उल्लेख पहले किया जा चुका है, जनप्रिय और स्निग्ध नजीर पर दृष्टिपात करते हुए, अब इस युग का एक ही महान कवि और रह जाता है, जिसका उल्लेख आवश्यक है। यह कवि गौरवपूर्ण बिहारी लाल चौबे ( उपस्थित १६५० ई०) हैं, जो टीकाकारों की खान के रूप में प्रख्यात हैं। इनका कोई भी विवरण इतना सटीक नहीं हुआ है। यह सात सौ दोहों के रचयिता हैं। इनके आश्रयदाता जयसिंह की ओर से इन्हें प्रत्येक दोहे पर सोने की एक अशर्फी मिलती थी। प्रत्येक दोहा जान बूझकर यथासम्भव अलंकृत और श्लेष से परिपूर्ण किया गया है और पूर्ण रूपेण चिक्कणी- कृत रत्न है। बड़े बड़े साहित्यकारों ने भी इस प्रतिभाशाली कवि की रमणीय जटिलताओं को सुलझाने के लिए टीकाएँ लिखने से अपने को नहीं रोका है।

इस गौरवपूर्ण कवि के साथ साथ हमारा हिन्दुस्तानी भाषा साहित्य के स्वर्ण काल का सर्वेक्षण समाप्त होता है। अठारहवीं शती के प्रारम्भ ही से


१. खेम ने काव्यशास्त्र का कोई ग्रंथ नहीं लिखा।—अनुवादक।
२. गुरूगोविन्द सिंह 'गुरु ग्रंथ साहब' के संकलयिता नहीं हैं। इसका संकलन सिक्खों के पांचवें गुरु अर्जुन ने किया था।
—अनुवादक