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जाते थे। मलिक मुहम्मद ने इस हिंदू परंपरा की चिंता नहीं की और अपना ग्रंथ फारसी लिपि में लिखा और इस प्रकार जो शब्द उन्होंने लिखा उसके उच्चारण का विशेष ध्यान रखा। यह (फ़ारसी) पद्धति पूर्ण नहीं थी, क्योंकि परंपरानुसार इसमें स्वर बहुत कम लिखे जाते थे, फिर भी पद्मावती में प्रत्येक शब्द का व्यंजन-समूह उसी रूप में हमें मिलता है, जिस रूप में रचना करते समय वह बोला जाता था।

मालिक मुहम्मद के साथ हिंदुस्तान के भाषा साहित्य का शैशवकाल समाप्त समझा जा सकता हैं। विशाल देव के इस बच्चे में अब स्पंदन हुआ और उसे विदित हुआ कि अब वह दृढ़ और सबल हो गया है और गृद्ध के समान अपनी उड़ान लेने के लिए उसने अपने तरुण स्फूर्तिमान पंख पसार दिए। प्रारंभिक राजपूत चारणों ने संक्रमण काल में एक ऐसी भाषा में रचना की थी, जिसको टीक-टीक या तो उत्तरकालीन प्राकृत अथवा राजपूताना की आधुनिक भाषा का प्राचीन रूप कहना सर्वथा कठिन हैं। यह शैशवावस्था थी। फिर तरुणाई आई, जब बौद्ध धर्म द्वारा गृहित स्थान को ग्रहण करने के लिए एक जन-प्रिय धर्म का प्रादुर्भाव हो रहा था और अभिनव सिद्धांतों के प्रवर्तक महात्माओं को उस बोली में लिखना आवश्यक हो गया, जिसे सर्वसाधारण समझते थे। मलिक मुहम्मद और दोनों वैष्णव संप्रदायों के गुरुओं को अपना पथ निर्मित करना था और वे अनिश्चय के साथ इस दिशा में अग्रसर हो रहे थे। जब वे लोग रचना कर रहे थे, उस समय बोली जानेवाली भाषा प्रकृत्या वही थी, जो आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाती है, और उन्हें वहीं हिचक हुई होगी जो स्पेंसर और मिल्टन को अपनी भाषा में लिखने में हुई थी। स्पेंसर ने अशुद्ध प्रणाली ग्रहण की और उसने अपने फ़ेअरी क्वीन' को पुरातनता के साँचे में ढाला, लेकिन मिल्टन ने ठीक पथ पकड़ा, यद्यपि उसने भी पहले 'पैराडाइज़ लास्ट' को लैटिन में लिखने का विचार किया था, और तभी से अंगरेजी भाषा निर्मित हुई। यही हिंदुस्तान में हुआ। प्रारंभिक भाषा कवियों ने बड़ा साहस किया और उन्हें सफलता मिली।

सोलहवीं तथा सत्रहवीं शती हिन्दुस्तानी भाषा साहित्य का श्रेष्ठतम युग हैं। इस देश का प्रायः प्रत्येक महान साहित्यकार इसी युग में हुआ। इसके महानतम लेखक एलिजाबेथ युगीन हमारे महान लेखकों के समकालीन थे। हम अंग्रेजों को यह जानना बड़ा मनोरंक होगा कि जब हमारा देश राजदूतों के द्वारा प्रथम चार मुगल दरबार से संबंधित हुआ, जब ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई और दोनों जातियाँ जब जल और स्थल के कारण