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वक्तव्य

शिवसिंह सरोज में दिए हुए कवियों के तथ्य एवं तिथियों की जाँच मैं इधर पिछले दो-तीन वर्षों से करता रहा हूँ। इस सिलसिले में मुझे हिन्दी साहित्य के प्रथम इतिहास ग्रियर्सन कृत 'द माडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर आफ़ हिन्दुस्तान को भी देख लेने की आवश्यकता प्रतीत हुई। बड़ी कठिनाई से इसकी एक प्रति काशी में कुछ दिनों के लिए मिली, जिसका उपयोग मैं वहीं रहकर कर सकता था। मैंने सं° २०१२ की अमावस्या की छुट्टियों में (१३-२० नवम्बर १९५६) इस ग्रंथ का सदुपयोग किया। भाई मंगलाप्रसाद पांडेय के यहाँ तो मैं काशी आने पर सदैव टिकता ही हूँ, इस बार भी टिका। सामान्यतया अन्य अवसरों पर परिवार के अन्य सदस्यों से घुलमिल कर रहता, पढ़ता, लिखता, सोता हूँ; पर इस बार मेरे लिए अलग कमरे की व्यवस्था हुई, जहाँ मैं अपना अध्ययन सुचारु रूप से एवं निर्विघ्न चला सकूँ, जहाँ अकेला रहूँ, भीतर से किवाड़ बन्द कर हूँ और बच्चों की भीड़-भाड़ जहाँ न पहुँच सके। सरोज सर्वेक्षण के सिलसिले में मुझे इस ग्रंथ की बार-बार आवश्यकता पड़ेगी, मैं इस बात को जानता था। पर ग्रंथ चन्द ही दिनों के लिए मिला था, इसे मैं लगातार दो वर्षों तक अपने पास नहीं रख सकता था। ग्रन्य बहुत बड़ा नहीं है, यह देखते ही मेरे मन में बात उठी कि इसे ज्यों का त्यों उतार लिया जाय और हस्तलिखित प्रति का सदुपयोग सर्वेक्षण में किया जाय। इस दृष्टि से सबसे पहले इसका पहला अध्याय मैंने उतार भी लिया। ऐसा करते समय मुझे लगा कि इस ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद करना कोई कठिन नहीं। अतः प्रतिलिपि करने की अपेक्षा मैंने अनुवाद कर डालना ही समीचीन समझा।