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लिखना, जिस रूप में वह बोला जाता है। मैंने इस नियम का परित्याग कतिपय जीवित भारतीय सज्जनों के नामों के ही सम्बन्ध में किया है। इस सिद्धान्त पर कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा के अनुसार अपना नाम लिखने की स्वतंत्रता प्राप्त है, मैंने उनके नामों की वर्तनी वैसी ही रखी है, जैसी वे अंग्रेजी में अपना हस्ताक्षर करते समय व्यवहृत करते हैं। प्रमुख कठिनाई जिसका अनुभव हमें हुआ है, वह है पूर्ण नाम बनाने वाले शब्दों के समूहों के अलग अलग विभाजन की। एकरूपता लाने का प्रयत्न कोई साधारण व्यापार नहीं सिद्ध हुआ है। ऐसा करने में विचित्र और वास्तविक प्रयोग से भिन्न परिणाम पर पहुँचना पड़ा है। इस सम्बन्ध में वर्तमान पद्धति यद्यपि सरल है, फिर भी इसका कोई सिद्धान्त नहीं, और चाहे जिस सिद्धान्त का ग्रहण कर लिया जाय, इसमें कुछ न कुछ गड़बड़ी अवश्य होगी। जहाँ जहाँ इस पुस्तक में एक ही नाम आया है, वहाँ वहाँ सर्वत्र मैंने उसे एक ही रूप में विभक्त करने का प्रयास किया है। परन्तु मुझे स-खेद कहना पड़ता है कि ग्रन्थ में आए चार हजार से कुछ अधिक ही नामों में से कुछ में लेखनी-दोष आ ही गया है।

नव भारतीय भाषाओं के सम्बन्ध में लिखने के लिए क्षमा याचना अब उतनी आवश्यक नहीं है, जितनी वह बीस वर्ष पहले हुई होती। प्रथम तो [यूरोपीय] प्राच्य विद्याविशारद मात्र संस्कृत की समाराधना में रत रहे, फिर बर्मफ़ की देख-रेख में उन्होंने पाली पर धावा किया। पिछले दिनों अमर प्राकृतों ने विद्यार्थियों का ध्यान अकिर्षित किया। इस प्रकार हमारे शोध विषय का काल दिन दिन और भी आधुनिक होता गया है। अब मैं अपने पाठकों से प्रार्थना करूँगा कि वे उसे लघु अन्तर के ऊपर एक डग और धरें, जो पिछली प्राकृत को प्रारम्भिक गौड़ीय साहित्य से विलग करता है। हेमचन्द्र ११५० ई०१ के आस पास उपस्थित था और चंदबरदाई, जो कि गौड़ीय कवियों में प्रथम है, और जिसके कुछ निश्चित अवशेष आज भी हमारे पास सुलभ हैं, ११९३ में मरा।

इतने पर भी यह सम्भव है कि प्राच्य विद्याओं के कुछ विद्यार्थी अब भी संस्कृत से पुराने प्रेम के साथ चिपके रहें, उनसे मैं आगे के इन पृष्ठों में सुलभ उस वैभवपूर्ण असंस्कृत सामग्री की परीक्षा करने के लिए कहूँगा, जिसमें कठिन संस्कृत ग्रन्थों२ के अनेक भाषाभाष्यों के तथा व्याकरण,


[१]

  1. :१. वह ११७२ ई० में मरा।
    २. उदाहरण के लिए गुमान जी (संख्या ३४९) ने नैषध पर एक अत्यन्त प्रसिद्ध टीका लिखी, यह अठारहवीं शती के प्रारम्भ में हुए हैं।