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समय हिंदुस्तान में कोई भी स्वतंत्र समीक्षा-पत्र नहीं है, जिसका पथ-प्रदर्शन मैं स्वीकार करता; और मैं आवश्यकता-वश अपने सीमित-अध्ययन पर ही निर्भर रहने के लिए विवश और बाध्य हो गया हूँ। हाँ, शिव सिंह सरोज में आए हुए नामों से मुझे अवश्य सहायता मिली है। पूर्व युगों के लिए तो ओसानेवाली समय की डलिया मेरी सहायिका थी, जिसने भूसा उड़ा दिया था और हमारी परख के लिए अन्न एकत्र कर दिया था; किंतु इस समय तो न केवल भूमे का अनुपात अन्न से अत्यधिक है, बल्कि दोनों अभी तक एक ही में मिले जुले पड़े हुए हैं, अलग भी नहीं हुए हैं।

ऐसी परिस्थिति में, मैं नीचे दी हुई सृची प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिसमें शिव सिंह सरोज में आए हुए सभी नाम हैं, साथ ही उन लोगों के भी नाम है, जो मेरे अध्ययन काल में मुझसे मिले और संग्रह योग्य प्रतीत हुए। मुझे यह निःसंकोच कह देना चाहिए कि इस युग के बहुत से लेखक और पिछले युग के भी (जिनमें से सौभाग्य से अभी कुछ जीवित हैं), [भविष्य में] एक ही अध्याय में उल्लिखित होंगे। इनमें से कुछ जैसे हरिश्चंद्र, विद्रोह बाद के युग के हैं, परंतु विशिष्ट वर्ग के लेखकों पर सरलता से एक साथ पूर्ण विचार कर लेने की दृष्टि से जान बूझकर पिछले युग में सम्मिलित कर लिए गए हैं।
६९१. उमापति त्रिपाठी—पंडित उमापति त्रिपाठी, अयोध्या जिला फैजाबाद के रहनेवाले। मृत्यु १८७४ ई०।

संस्कृत साहित्य के प्रत्येक अंग का इन्होंने गंभीर अध्ययन किया था। पहले यह बनारस में रहते थे, लेकिन अंत में यह अयोध्या (औध) में बस गए थे, जहाँ यह अध्यापन और लेखन के कार्य में व्यस्त रहे। यह १८७४ ई० में दिवगंत हुए। इनके सर्वाधिक प्रसिद्ध ग्रंथ संस्कृत में है, किंतु इन्होंने कुछ छोटी पुस्तकें जैसे दोहावली, रत्नावली आदि भाषा में भी लिखी है। यह 'कोविद' उपनाम से लिखते थे।
६९२. रघुनाथ दास—अयोध्या, जिला फैजाबाद के महंत रघुनाथ दास।

१८८३. ई० में जीवित थे।

मूलतः यह पैंतेपुर जिला फतेहपुर के ब्राह्मण थे, लेकिन सांसारिक धन दौलत छोड़ यह राम के भक्त हो गए और उनकी प्रशंसा में सैकड़ों भजन बना डाले। देखिए ६९३।

टि०—पैंतेपुर जिला सीतापुर में है, न कि फतहपुर में।

——सर्वेक्षण ७४२