पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२७१

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( २५२ ) ५७६. वंदन पाठक-बनारसी। १८८३ ई० में जीवित इन्होंने बनारस के महाराज ईश्वरी नारायण सिंह के आदेश से तुलसीदास (सं० १२८) कृत रामायण की सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध टीकाओं में से एक लिखी है। इसका नाम है 'मानस शंकावली' । ५७७. जानकी परसाद कवि-बनारसी। १८१४ ई० में उपस्थित १८१४ ई० में इन्होंने केशवदास (सं० १३४) कृत रामचन्द्रिका की टीका लिखी। इन्होंने 'जुक्ति रामायण' नामक एक और ग्रन्थ भी लिखा । इसकी टीका कवि धनीराम ( सं० ५७८ ) ने की है। यह या दूसरे नानकी प्रसाद (सं०६९५) ही सम्भवतः यह तीसरे जानकी प्रसाद भी हैं, जिनका उल्लेग्त्र, बिना तिथि दिए हुए, शिवसिंह ने किया है। टिक-तीसरे जानकी प्रसाद ( सर्वेक्षण २६२) मँगते कवि हैं और निश्चय ही इनसे ( सर्वेक्षण २६३ ) एवं जानकी प्रसाद पँवार ( सर्वेक्षण २६५ ) से भिन्न हैं। ५७८. धनीराम कवि-बनारसी । जन्म १८३१ ई०। । महाराज बनारस के भाई बाबू देवकीनंदन की प्रार्थना,पर इन्होंने काव्य प्रकाश का संस्कृत से भाषा में अनुवाद किया और केशवदास (सं० १३४) कृत रामचन्द्रिका की टीका लिखी । इन्होंने कवि जानकी प्रसाद (सं० ५७७), कृत जुक्ति रामायण की भी टीका लिखी। टिक-धनीराम ने देवकीनंदन के पुन स्तन सिंह के आदेशानुसार सं० १८८० में काव्य प्रकाश का मापानुवाद लिया। अतः १८३१ ई०(सं० १८४०) इनका जन्म काल न होकर उपस्थिति काल है। राम चन्द्रिका की टीका इनके आश्रयदाता जानकी प्रसाद जी ने की थी। हो सकता है इसमें इनका भी कुछ प्रच्छन्न हाथ रहा हो । ---सर्वेक्षण ३८२ ५७९. सेवक कवि-वंदीजन बनारसी । १८८३ ई० में जीवित । । सुन्दरी तिलक । शृङ्गारी कवि। यह महाराज बनारस के भाई देवकीनंदन जी के दरबारी कवि थे। सम्भवतः यही सं०६७७ वाले कवि भी हैं। . टिक-सेवक . १८८३ ई० (सं० १९४० ) में जीवित नहीं थे। इनकी । मृत्यु दो साल पहले सं० १९३८ में ही हो गई थी। दानों सेवक एक ही हैं, इनमें सन्देह नहीं । सेवक देवकीनन्दन सिंह के यहाँ नहीं थे, उनके पौन (जानकी प्रसाद के पुत्र ) हरिशंकर सिंह के यहाँ थे। -सर्वेक्षण ८८३, ८८४