पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२५१

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(२३२ ) .. निकले और इन्होंने पिछली पीढ़ियों द्वारा प्रस्तुत मूल्यवान भाषा साहित्य की जानकारी प्रसारित करने में बहुत सहायता की। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, सर्व प्रियों में से एक, और सर्वश्रेष्ठों में से एक, सुन्दरी तिलक था; किन्तु आकार और प्रकार दोनों दृष्टियों से सबसे महत्वपूर्ण संग्रह 'रागसागरोद्भव राग कल्पद्रुम' है, जो १८४३ ई० में प्रकाशित हुआ। वर्गीकरण की सुविधा की दृष्टि से, मैं इस अध्याय को क्रमशः बुन्देलखंड और बघेलखंड, बनारस, औध, तथा अन्य दूसरे स्थानों को ध्यान में रखकर . चार भागों में विभक्त कर रहा हूँ। सामान्यतया इस अध्याय में वे ही कवि दिए गए हैं, जो १८०० और १८५७ के बीच पैदा हुए और उपस्थित हैं, किंतु कुछ ऐसे भी हैं, जो इससे पिछले युग के हैं और यहाँ सन्निविष्ट होने के लिए छोड़ दिए गए थे; अथवा कुछ आनेवाले युग के कवि हैं, जिन्हें सम्मि- लित करके आगे आनेवाले इतिहास का आभास दिया गया है। ऐसा विभिन्न वर्गों को पूर्ण करने की दृष्टि से ही किया गया है। प्रथम भाग : बुन्देलखंड और बघेलखंड ५०२. मोहन सह-बौदावासी 1 १८०० ई० के आसपास उपस्थित । यह प्रसिद्ध कवि हैं। यह पहले परना के बुन्देला महाराज हिन्दूपति के दरबारी कवि थे, फिर जयपुर के परताप सिंह सवाई ( १७७८-१८०३.ई.) और जगत सिंह सवाई ( १८०३-१८१८ ई.) के। (टाड का राजस्थान, भाग २, पृष्ठ ३७५, कलकत्ता संस्करण, भाग २, पृष्ठ ४१४ )। इनके पुत्र प्रसिद्ध पद्माकर (सं०५०६) थे, जिनके पौत्र गदाधर ( सं० ५१२) हुए। यह किसी सुजान सिंह की भी प्रशंसा करते हैं। देखिए सं० ३६७, ३६८ । हिन्दूपति के संबन्ध में देखिए सं० ५०३ । टि०–मोहन लाल भट्ट का जन्म सं० १७४३ में हुआ था। यह सं० १८४० के आसपास जयपुर गए थे। इसके शीघ्र हो बाद इनका देहान्त हुआ होगा । १८०० ई० ( स० १८५७) तक इनका जीवित रहना बहुत सम्भव नहीं दिखाई देता। -सर्वेक्षण ६३१ ५०३. रूपसाहि-परना, चुन्देलखंड के निकट बागमहल के कायस्थ । १८०० ई० के आसपास उपस्थित । यह परना के बुन्देला महाराजा हिन्दूपति (मिलाइए सं० ५०२) के दरबारी कवि थे। यह रूप विलास ( १७५६ ई० में लिखित ) नामक ग्रन्थ के