पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२२४

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. टि-अलंकार निधि की रचना सं० १८०५ में हुई थी। (सर्वेक्षण २५६) जुगल किशोर ( सर्वक्षण २५७ ) से यह भिन्न हैं या अभिन्न, यह निर्णय करने के लिए कोई भी खुत्र सुलभ नहीं है। ३४९. गुमान जी मिसर-सौड़ी जिला हरदोई के। १७४० ई० में उपस्थित। यह संस्कृत और साहित्य में दक्ष थे। यह जुगुल किशोर भट्ट (सं० ३४८) के संरक्षण में, दिल्ली के बादशाह मुहम्मदशाह (१७१९-१७४८ ई.) के दरबार में थे। तदनन्तर यह अली अकबर खाँ मुहम्मदी के यहाँ चले गए, जो स्वयं अच्छे कवि थे और जिनके यहाँ निधान (सं० ३५०) प्रेमनाथ (सं० ३५१ ) और अन्य बड़े कवि नौकर थे । गुमान जी ने 'कलानिधि लिखा, जो श्री हर्ष के नैषध का विविध छंदों में पंक्ति प्रति पंक्ति टीका है ! इन्होंने नैषध के कठिनतम अंश पंचनलीय पर सलिल' नामक एक विशेष टीका भी लिखी। शिवसिंह द्वारा उल्लिखित, १७३१ ई० में उत्पन्न, कृष्ण चन्द्रिका नामक ग्रंथ के रचयिता, दूसरे गुमान कवि भी सम्भवतः यही हैं । पुनश्च :- कलानिधि की तिथि सं० १८०५ (१७४८ ई०) दी गई है। ग्रन्थ टीका न होकर अनुवाद है। टि-गुमान मिन ने 'काव्य कलानिधि नाम से नैषध का हिन्दी में अनुवाद किया था। इन्होंने पंचनलीय पर कोई विशेष टीका नहीं लिखी, सरोजकार का अर्थ वही है, जो ग्रियर्सन ने पाद टिपणी में दिया है। कृष्ण चन्द्रिका वाले गुमान ( तिवारी) से यह नैषध वाले गुमान मिश्र भिन्न हैं। -सर्वक्षण १८५, १८६ ३५०. निधान-ब्राह्मण । १७५१ ई० में उपस्थित । यह अली अकबर खाँ मुहम्मदी के दरबार में थे, जहाँ इनका अच्छा सम्मान था। इन्होंने भाषा में पशु-चिकित्सा पर, एक अच्छा काव्यमय, शालिहोत्र लिखा था। गुमान जी मिसर (सं० ३४९) और प्रेमनाथ (संख्या ३५१) भी इनके साथ उक्त दरबार में थे। टि-शालिहोत्र की रचना सं० १८१२ में हुई थी। -सर्वेक्षण ४११ ३५१. प्रेम नाथ कलुआ, जिला खीरी, अवध के ब्राह्मण । १७७० ई० में उपस्थित । १. · अथवा शिव सह (जिनसे मैंने यह लिया है) का यह अभिप्राय है कि उन्होंने पंचनलीय को पानी की तरह विलकुल स्पष्ट कर दिया।