पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२२०

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.. . . ( २०१.) टिक-गजसिंह आमेर के राजा थे। सरोज में उल्लिखित आमेर को ग्रियर्सन ने अजमेर पद लिया, फलतः टाट में हूँढ़ने पर भी अजमेर के राजवंश में इस नाम का कोई राजा उन्हें नहीं मिला। -~-सर्वेक्षण ७४ ३३५. सुखदेव कवि-दोआब के । १७५० ई० में उपस्थित । __यही संभवतः दौलतपुर के सुखदेव मिसर (सं० ३५६) अथवा इसी नाम के कम्पिला के दूसरे कवि (सं० १६०) भी है। यह असोथर, (फतहपुर ) के भगवन्त राय खींची (सं० ३३३) (मृत्यु १७६० ई०) के दरबार में थे। टि०-१६०, ३३५, ३५६ संख्यक सुखदेव एक ही हैं। -सर्वेक्षण ८३४ . ३३६. भूधर कवि-असोथर जिला फतहपुर के। १७५० ई० के आस-पास उपस्थित। यह असोथर, फतहपुर के भगवन्त राय खींची (सं० ३३० ) ( मृत्यु १७६०) में दरबार में थे। ३३७. मल्ल कवि-१७५० ई० के आस-पास उपस्थित । यह अंसोथर, फतहपुर के भगवन्त राय खींची ( संख्या ३३०) ( मृत्यु १७६०ई०) के दरबार में थे। ३३८. संभुनाथ मिसर कवि-असोथर, जिला फतहपुर के । १७५० ई० के आस-पास उपस्थित । सत्कविगिराविलास । यह असोथर, फतहपुर, के भगवन्त राय खींची (सं० ३३०) (मृत्यु १७६० ई.) के दरबार में थे। यह (१) रसकल्लोल, (२) रसतरंगिणी, और (३) अलंकार दीपक के रचयिता थे। यह शिव अरसेला (सं० ३३९) और अन्य अनेक कवियों के गुरु थे। ३३९, सिव अरसेला कवि-देउतहाँ जिला गोंडा के भौंट और कवि । १७७०.ई० के आस-पास उपस्थित । यह असोथर, फतहपुर के संभुनाथ मिसर (सं० ३३८) के शिष्य और जगत सिंह बिसेन के (सं० ३४० ) के गुरु थे। यह रसिकविलास नामक साहित्य ग्रंथ के रचयिता थे। इन्होंने (२) अलंकार भूषण, (३) और एक . पिङ्गल भी लिखा। टि-इनके पिंगल का नाम 'पिंगल छंदोबोध' है। ---सर्वेक्षण ८४३ ।