पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२१४

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अध्याय अठारहवीं शताब्दी प्रारम्भिक टिप्पणी-इस अध्याय में वर्णित युग भारतीय इतिहास की दो महत्वपूर्ण घटनावलियों को घेरे हुए है-मुगल साम्राज्य का ह्रास और पतन तथा मगठा शक्ति का उत्थान और पतन । बहादुरशाह १७०७ ई० में औरंगजेब के सिंहासन पर बैठा और मराठों के चंगुल से शाह आलम १८०३ ई० में लाई लेक द्वारा छुड़ाया गया। वह १८०६ ई० में मरा । उसका बेटा अकबर द्वितीय नाम मात्र के बादशाही गौरव का उत्तराधिकारी हुआ। दूसरी ओर बाला जी विश्वनाथ, प्रथम पेशवा, साहू की गद्दी पर बैठने के साथ-साथ १७०७ ई० में प्रभुत्वशील हो गया और अन्तिम पेशवा द्वितीय मराठा युद्ध में, १८०३-४ ई० में गद्दी से उतार फेंका गया । ऐसा समय न तो नए सम्प्रदायों की स्थापना के लिए उपयोगी था, न . कला-सृष्टि के लिए। यह सत्य है कि कुछ धार्मिक सुधारक उत्पन्न हुए और उनके प्रयत्न यद्यपि थोड़ी देर के लिए कुछ मात्रा में सफल हुए, पर उनका हिन्दुस्तान पर वह स्थायी प्रभाव नहीं पड़ा, जो रामानन्द और बल्लभाचार्य का पड़ा था। चारणों का देश राजपूताना अब मुगलों के विरुद्ध संघटित शक्ति और जाति नहीं था; वह कौटुम्बिक झगड़ों में पड़कर उखड़-पुखड़ गया या, विशृङ्खल हो गया था, जैसा कि दो राजाओं द्वारा काव्य सुनाने के आमंत्रण पर इन चारणों में से एक ने कहा था- जोधपूर आमेर ये, दोनों थाप अथाप। कूरम सारा बैकरा, कामध्वज मारा बाप ॥' कुरसी के झगड़े में कोई सम्बन्ध, कोई मित्रता नहीं देखी जाती थी। राजपूताना के बड़े से बड़े, अच्छे से अच्छे राजाओं पर भी अवनत होते हुए साम्राज्य को लूट खसोट करने की शीघ्रता ने आक्रमण किया। जयपुर के जयसिंह भी, जो इतिहास लिखने वाले राजा और ज्योतिषी थे, भारत द्वारा १. मल अन्य में दोहे का अंगरेजी अनुवाद किया गया है। यह दोहा करन कवि ( सर्वेक्षण ____७१) का है । सरोज से यहाँ उद्धृत किया गया है। '-अनुवादक