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(२) छंदसार--श्री नगर के फतहसाहि बुंदेला के नाम पर पिंगल ग्रंथ । और (३) रसराज ( राग कल्पद्रुम)--नायिका भेद का ग्रंथ । देखिए गासी द तासी, भाग १, पृष्ठ ३३२. टि-~-छंदसार प्रसिद्ध भूषण के भाई, कश्यप गोत्रीय मतिराम की रचना . नहीं है। यह वनपुर, जिला कानपुर के निवासी, वत्सगोत्राय विश्वनाथ त्रिपाठी के पुत्र मतिराम की रचना है। इसका असल नाम 'वृत्त कौमुदी' है। इसकी रचना सं० १७५८ कार्तिक शुक्ल १३ को सरूप सिंह बुंदेला के लिए हुई थी, जो प्रसिद्ध मधुकरशाह बुंदेला के वंशज थे। सर्वेक्षण ६९५. १४७. शंभुनाथ सिङ्घ-सितारा के राजा शंभुनाथ सिंह सुलंकी, उर्फ शंभु कवि . उर्फ नाथ कवि, उर्फ नृप शंभु । १६५० ई० के आसपास उपस्थित : . सुंदरी तिलक, सत्कविगिग विलास । कवियों के आश्रयदाता ही नहीं, स्वयं एक प्रसिद्ध ग्रंथ के रचयिता। यह शृङ्गार रस में है और इसका नाम । 'काव्य निराली' है । यह नायिका भेद के प्राप्त ग्रंथों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यह मतिराम त्रिपाठी ( संख्या १४६ ) के परम मित्र थे। . टि-शंभुनाथ सोलंकी क्षत्रिय नहीं थे, मराठे थे। सरोज में इस कवि के संबंध में लिखा है:- ___ "शृङ्गार की इनकी काम्य निराली है। नायिका भेद का इनका ग्रंथ : सर्वोपरि है।" ___ इमीका भ्रष्ट अंगरेजी अनुवाद ग्रियर्सन ने किया है और इनके काव्य ग्रंथ का नाम 'काव्य निराली हूँद निकाला है। इनका नखशिख रत्नाकर जी द्वारा संपादित होकर भारत जीवन प्रेस, काशी से प्रकाशित हो चुका है। १४८. नीलकंठ त्रिपाठी-उपनाम जटाशंकर, टिकमापुर जिला कान्हपुर के । .. " १६५० ई० के आसपास उपस्थित ! काव्य निर्णय, सत्कविगिराविलास ! चिंतामणि त्रिपाठी (सं० १४३.) के . भाई। इनके किसी भी पूर्ण काव्य ग्रंथ का पता नहीं। १४९. परतापसाहि:-बुंदेलखंडी भाट, १६३३ (१) ई० में उपस्थित १. 'साहि' या 'शाहि' शब्द वही है, जो 'शाह' है, जो पुराना रूप है। इसके अंतिम ' में उस पदांत 'य' का अवशेष है जो सेंद क्षयथिय (Zend kshayathiya) में पाया जाता है और जो माधुनिक पारसी 'शाह से अब उड़ गया है। देखिए जोरोरियन