पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१३८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(१२७)

ने इनका परिचय हनुमान से कराया था; जिनके द्वारा इन्हें राम और लक्ष्मण के दर्शन मिले। इन्होंने एक हत्यारे की हत्या छुड़ा दी, जब उसने भक्ति-भाव से राम का नाम भर ले लिया। जब लोगों ने इनके इस कथन को प्रमाणित करने के लिए ललकारा, इन्होंने उस हत्यारे के हाथ द्वारा दिए गए प्रसाद को शिव से स्वीकार कराके अपनी बात सिद्ध भी कर दी। कुछ चोर इनके यहाँ चोरी करने आए, पर इनके घर की देखभाल एक रहस्यमय पहरेदार द्वारा हो रही थी, जो और कोई नहीं था, स्वयं राम थे; और चोरी करने के बदले, वे चोर भक्त और शुद्ध हृदय हो गए। इन्होंने एक ब्राह्मण को पुनर्जीवन प्रदान कर दिया था१। उनकी प्रसिद्धि दिल्ली पहुँची, जहाँ शाहजहाँ (१६२८-१६५८; परन्तु कवि तो १६२४ में ही मर गया था) बादशाह था। बादशाह ने इन्हें बुलाया, चमत्कार दिखाने को कहा, और अपने राम को प्रत्यक्ष कराने की भी बात कही। तुलसीदास ने अस्वीकार किया। बादशाह ने इन्हें कैद में डाल दिया। जो हो, वह शीघ्र ही उन्हें मुक्त करने के लिए विवश हो गया, क्योंकि अगणित बन्दर बन्दीगृह के पास आ जुटे और उसको तथा पास पड़ोस की अन्य इमारतों को तोड़ने फोड़ने लगे। शाहजहाँ ने कवि को छोड़ दिया और इनका जो अपमान हुआ था, उसके बदले में इनसे कुछ माँग लेने के लिए कहा। तदनुसार तुलसीदास ने उससे दिल्ली छोड़ देने की प्रार्थना की, क्योंकि अब वह राम-निवास हो गई थी। इनकी प्रार्थना की पूर्ति के लिए बादशाह ने दिल्ली छोड़ दी और नया नगर शाहजहानाबाद नाम से बसाया। इसके बाद तुलसी वृन्दावन गए, जहाँ यह (भक्तमाल के रचयिता) नाभादास से मिले। यहाँ इन्होंने कृष्ण भक्ति की अपेक्षा राम भक्ति की श्रेष्ठता प्रतिपादित की, यद्यपि कृष्ण स्वयं आए और इन्हें विश्वास दिलाया कि दोनों में कोई अन्तर नहीं है। इन लड़कपन से भरी दंतकथाओं के जाल से तथ्य के कुछ सूत्र निकालना संभव हो सकता है, किंतु जब तक हमें गोसाँई चरित्र की कोई प्रति नहीं मिल जाती, उन तक पहुँचने की कोई विशेष आशा नहीं की जा सकती।

इनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है रामचरित मानस, जिसका लिखना इन्होंने अयोध्या में, संवत १६३१ चैत्र नवमी मंगलवार (१५७४-७५ ई०)२ को प्रारम्भ किया था। प्रायः अशुद्ध ढंग से यह 'रामायण' या 'तुलसीकृत रामायण'


[१]

  1. १. इसके आगे प्रायः विलसन के ही शब्दों में लिखा जा रहा है।
    २. रामायण बालकांड, चौपाई ४२।