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५९. हरिदास स्वामी-व्रजांतर्गत वृंदावन के निवासी । १५६० ई० में उपस्थित ।

राग कल्पद्रुम । इनकी संस्कृत रचनाएँ जयदेव के समान और भाषा

कविताएँ सूरदास और तुलसीदास के बाद समझी जाती हैं। इनके सर्वाधिक ज्ञात ग्रंथ हैं.--'साधारण सिद्धांत' और 'रस के पद' । इनके अनेक प्रसिद्ध शिष्य हुए हैं, जिनमें तानसेन (सं० ६०) इनके चाचा विपुल विठ्ठल (सं०६२) और भगवत रमित ( सं०६१) का उल्लेख किया जा सकता है। विलसन के अनुसार यह चैतन्य के शिष्य थे, जो १५२७ ई० में अन्तर्धान हुए। ( रेलिजस सेक्ट्स आफ़ द हिंदूज़ पृष्ठ १५९ )। किंतु यह संदेहास्पद है।देखिए ग्राउस, जर्नल आफ़ एशियाटिक सोसाइटी आफ बंगाल, जिल्द ४५(१८७६ ई.) पृष्ठ ३१७, जहाँ इस संबंध में पूर्ण विचार किया गया है और जहाँ (पृष्ठ ३१८) 'साधारण सिद्धांत' का मूल पाठ और अनुवाद दिया गया है।

 टि-स्वामी हरिदास वृंदावनी केवल हिंदी के कवि थे। राग कल्पद्म

में हरिदास की छाप से युक्त जो संस्कृत रचनाएं मिलती हैं, वे इनकी न होकर बल्लभ संप्रदाय के वैष्णव, विट्ठलनाथ के शिष्य हरीदास नागर की हैं। हरिदास का स्थान हिन्दी कवियों में इतना ऊँचा नहीं हैं, जितना ग्रियर्सन ने समझा है। स्वामी हरिदास के कुल ११० पद हैं, जो विभिन्न राग रागनिया में बँटे हैं। भगवत रमित के स्थान पर भगवत रसिक होना चाहिए। यह स्वामी हरिदास के न तो शिष्य थे, ने इनके समकालीन ही। इनके टही संप्रदाय के अवश्य थे। स्वामी हरिदास चैतन्य महाप्रभु के शिष्य नहीं थे। यह तो निबार्क संप्रदाय के थे और इसीके अंतर्गत इन्होंने टट्टी संप्रदाय की संस्थापना की थी। (-सर्वेक्षण ९६२)

६०. तानसेन कवि-ग्वालियर वासी । १५६० ई० में उपस्थित ।।

 राग कल्पद्रम। यह गौड़ ब्राह्मण मकरंद पांडे के पुत्र थे। यह हरिदास

(संख्या ६९) के शिष्य थे, जिनसे इन्होंने काव्य कला सीखी थी। फिर यह ग्वालियर के प्रसिद्ध गायक मुहम्मद गौस की शरण में गए। दंत-कथा है कि मुहम्मद गौस ने तानसेन की जीभ को अपनी जीभ से छू दिया; और तानसेन अपने युग के सर्वश्रेष्ठ गायक हो गए।

यह प्रसिद्ध शेर खों के पुत्र दौलत खाँ के इश्क में मुन्तला हो गए और उनकी तारीफ में इन्होंने अनेक कविताएँ लिखीं। जब दौलत खों दिवंगत हो गया, यह वाधव (रीवाँ) के बघेल राजा रामचंद्र सिंह के दरबार में चले गए। वहाँ से यह १५६३ ई० में बादशाह अकबर द्वारा बुला लिए गए, जहाँ यह दरबारी