दूसरे गुनचन्द ता सुत सीलचन्द सरूप
बीर चन्द प्रताप पूरन भयो अदभुत रूप
रत्नभौर हमीर भूपति संग खेलत आय
तासु वंश अनूप भो हरिचन्द अति विख्याय
आगरे रहि गोपचल में रहौ ता सुत वीर
पुत्र जल मैं सात लाके महा भट गम्भीर
कृष्णचन्द, उदारचन्द जु, रूपचन्द् सुभाइ
बुद्धिचन्द प्रकाश चौथौचन्द भे सुखदाई
देवचन्द प्रबोध संसृत चन्द ताको नाम
भयो सप्तो नाम सूरजचन्द मंद निकाम
सो समर करि स्याहि सेवक गए विधि के लोक
रहो सूरजचन्द ग ते हीन भरि बर सोक।
परो कूप, पुकार काहू सुनी ना संसार
सातएँ दिन आइ जदुपति कीन आपु उधार
दियो चख, दै कही, सिसु सुनु माँगु बर जो चाइ
हौं कही प्रभु भगति चाहत, शत्रु नाश सुभाइ
दूसरो ना रूप देख देखि राधा स्याम ।
सुनत करुणा सिन्धु भाख्यौ एवमस्तु सुधामं
प्रबल दच्छिन विप्रकुल तें सन्नु है है नास
असित बुद्धि विचार विद्याभान माने सास ।
नाम राखो मोर सूरजदास, सूर सुश्याम
भए अन्तरधान बीते पाछली निसि जास।
मोहि पन सोई है व्रज की बसे सुखि चित थाप
थपि गोसाईं करी मेरी आठ मद्धे छाप
विप्र अथ जगात को है भाव भूरि निकाम
सूर है नॅनन्द जू को लयो मोल गुलाम
सूरदास ने नल दमयन्ती की कोई कथा नहीं लिखी । जिसे सूर कृत 'नल दमन' समझा जाता है, वह ग्रंथ मिल चुकी है, और डा० मोतीचन्द ने सिद्ध कर दिया है कि वह अंथ किसी अन्य सूरदास की कृति है ।
सूरदास ने सूरसागर का अनुवाद नहीं किया, उन्होंने श्रीमद्भागवत का अनुवाद किया, वस्तुतः अनुवाद नहीं किया, सहारा लिया ।।