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संज्ञा दी भी नहीं है। जिन लोगों ने तासी एवं सरोज को नहीं देखा है, प्रमादवश वे इन्हें हिंदी साहित्य का प्रथम अथवा द्वितीय इतिहास समझ बैठे हैं। तासी और शिवसिंह दोनों को इतिहास पद्धति का ज्ञान था, इसमें संदेह नहीं; यह स्वयं उनके ग्रंथों की भूमिकाओं से स्पष्ट है, पर अनिवार्य कारणों से वे अपने ग्रंथों को इतिहास का रूप नहीं दे सके।

ग्रियर्सन का 'द माडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर आफ़ हिन्दुस्तान' हिन्दी साहित्य को प्रथम इतिहास है, जिसका हिन्दी अनुवाद इस ग्रंथ के रूप में पहली बार प्रस्तुत किया जा रहा है। ग्रंथ के नाम से यह आभास नहीं होता कि यह हिन्दी साहित्य का इतिहास है, अतः ग्रियर्सन को प्रस्तावना में इसकी पूरी व्याख्या करनी पड़ी है। इसीलिए पर्याप्त विचार के पश्चात् मैंने ग्रंथ का नाम 'हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास रखा है, जो मूल नाम का शब्दशः अनुवाद नहीं हैं।

मूल ग्रंथ अब मिलता नहीं। इसीलिए इसका अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। प्रश्न हो सकता है कि जब हिन्दी साहित्य के अनेक अच्छे इतिहास प्रस्तुत किए जा चुके हैं, फिर इस अनुवाद की क्या आवश्यकता थी, जब कि ग्रंथ अद्यतन है भी नहीं। इसके संबंध में निवेदन है कि इस अनुवाद की उपयोगिता से इनकार नहीं किया जा सकता। यह हिन्दी साहित्य के इतिहास की नींव का वह पत्थर है, जिस पर आचार्य शुक्ल ने अपने सुप्रसिद्ध इतिहास का भव्य-भवन निर्मित किया। इस इतिहास-ग्रंथ का ऐतिहासिक महत्व है। इसने प्रारंभिक खोज रिपोट एवं मिश्रबंधु विनोद को पूर्णतः प्रभावित किया है। शुक्ल जी के इतिहास के प्रकाश में आने के पूर्व एक युग था, जब यह ग्रंथ अत्यंत महत्वपूर्ण समझा जाता था। उसकी महत्ता अब यद्यपि अक्षुण्ण नहीं रह गई है, पर उसका महत्व तो है ही।

ग्रियर्सन ने सरोज के 'उ०' का अर्थ 'उत्पन्न करके सरोज में दिए संवतों को जन्मकाल माना है। सर्वेक्षण से जिन संवतों की जाँच संभव हो सकी है, उनमें से अधिकांश उपस्थिति-संवत सिद्ध हुए हैं। जिन संवतों की जाँच हो चुकी है, उनके संबंध में इस ग्रंथ में निर्णयात्मक टिप्पणियों दे दी गई हैं, शेष को