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रीतिबद्ध ग्रंथों की बहुत गहरी छानबीन और सूक्ष्म पर्य्यालोचना करने पर आगे चलकर शायद विभाग का कोई आधार मिल जाय, पर अभी तक मुझे नहीं मिला है।

रीति-काल के संबंध में दो बाते और कहनी हैं। इस काल के कवियों के परिचयात्मक वृत्तो की छानबीन मे मैं अधिक नहीं प्रवृत्त हुआ हूँ, क्योंकि मेरा उद्देश्य अपने साहित्य के इतिहास का एक पक्का और व्यवस्थित ढाँचा खड़ा करना था, न कि कवि-कीर्त्तन करना। अतः कवियों के परिचयात्मक विवरण मैने प्रायः मिश्रबंधु-विनोद से ही लिए हैं। कही कहीं कुछ कवियों के विवरणो में परिवर्द्धन और परिष्कार भी किया है; जैसे, ठाकुर, दीनदयाल गिरि, रामसहाय और रसिक-गोविंद के विवरणों में। यदि कुछ कवियों के नाम छूट गए या किसी कवि की किसी मिली हुई पुस्तक का उल्लेख नहीं हुआ तो इसमें मेरी कोई बड़ी उद्देश्य हानि नहीं हुई। इस काल के भीतर मैने जितने कवि लिए हैं या जितने ग्रंथों के नाम दिए हैं उतने ही जरूरत से ज्यादा मालूम हो रहे हैं।

रीतिकाल या और किसी काल के कवियो की साहित्यिक विशेषता के संबंध में मैने जो संक्षिप्त विचार प्रकट किए हैं वे दिग्दर्शन मात्र के लिये। इतिहास की पुस्तक में किसी कवि की पूरी क्या अधूरी आलोचना भी नहीं आ सकती है किसी कवि की आलोचना लिखनी होगी तो स्वतंत्र प्रबंध या पुस्तक के रूप में लिखूँगा। बहुत प्रसिद्ध कवियों के संबंध में ही थोड़ा विस्तार के साथ लिखना पडा है। पर वहाँ भी विशेष विशेष प्रवृत्तियों का ही निर्धारण किया गया है। यह अवश्य है कि उनमें से कुछ प्रवृत्तियो को मैंने रसोपयोगी और कुछ को बाधक कहा है।

आधुनिक काल में गद्य का आविर्भाव सबसे प्रधान साहित्यिक घटना है। इसलिये उसके प्रसार का वर्णन विशेष विस्तार के साथ करना पडा है। इस थोड़े से काल के बीच हमारे साहित्य के भीतर जितनी अनेकरूपता का विकास हुआ है उतनी अनेकरूपता का विधान कभी नहीं हुआ था। पहले मेरा विचार आधुनिक काल को 'द्वितीय उत्थान' के आरंभ तक लाकर उसके आगे