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नई धारा

हटाना ही स्थिर करती है और चुपचाप घर से निकल पड़ती है। वह पुरुष वेष में वीरों के साथ समिलित होकर अत्यत पराक्रम के साथ लड़ती है। उधर वसंत उसके वियोग में प्रकृति के खुले क्षेत्र में अपनी प्रेम-वेदना की पुकार सुनाता फिरता है, पर सुमना उस समय प्रेम-क्षेत्र से दूर थी––

अर्द्ध निशा में तारागण से प्रतिबिंबित अति निर्मल जलमय।
नील झील के कलित कूल पर मनोव्यथा का लेकर आश्रय॥
नीरवंता में अंतस्तल का मर्म करुण स्वर-लहरी में भर।
प्रेम जगाया करता था वह विरही विरह-गीत गा गाकर॥
भोजपत्र पर विरह-व्यथामय अगणित प्रेमपत्र लिख लिखकर।
डाल दिए थे उसने गिरि पर, नदियों के तट पर, नवपथ पर॥
पर सुमना के लिये दूर थे ये वियोग के दृश्य-कदंबक।
और न विरही की पुकार ही पहुँच सकी उसके समीप तक॥

अंत में वसंत एक युवक (वास्तव में पुरुष-वेष में सुमना) के उद्वबोधन से निकल पड़ता है और अपनी अद्भुत वीरता द्वारा सब का नेता बनकर विजय प्राप्त करता है। राजा यह कहकर कि 'जो देश की रक्षा करे वहीं राजा' उसको राज्य सौंप देता है। उसी समय सुमना भी उसके सामने प्रकट हो जाती है।

स्वदेश भक्ति की भावना कैसे मार्मिक और रसात्मक रूप में कथा के भीतर व्यक्त हुई है, यह उपर्युक्त सारांश द्वारा देखा जा सकता है। जैसा कि हम पहले कह आए हैं, त्रिपाठी जी की कल्पना मानव-हृदय के सामान्य मर्मपथ चलनेवाली है। इनका ग्राम-गीत संग्रह करना इस बात को और भी स्पष्ट कर देता है। अतः त्रिपाठी जी हमे स्वच्छंदतावाद (Romanticism) के प्रकृत पथ पर दिखाई पड़ते हैं। इनकी रचना के कुछ उद्धरण नीचे दिए जाते हैं––

चारु चंद्रिका से अलोकित विमलोदक सरसी के तट पर,
बौर-गंध से शिथिल पवन में कोकिल का अलाप श्रवण कर।
और सरक आती समीप है प्रमदा करती हुई प्रतिध्वनि,
हृदय द्रवित होता है सुनकर शशिकर छूकर यथा चंद्रमणि।